विपक्ष में एकता के विपरीत बिखराव
अंततः नई लोकसभा के लिए मतदान प्रारंभ हो गया और एक चरण संपन्न भी हो गया । उम्मीद थी कि जैसे-जैसे चुनाव नजदीक आएगा विपक्ष में एकता बढ़ती जाएगी और सत्ता और विपक्ष के मध्य तीखा टकराव होगा । उम्मीद यह भी थी की है टकराव मुद्दों पर होगा लेकिन सब कुछ इसके विपरीत हो रहा है । विपक्ष लगातार बिखर रहा है । पहला चरण संपन्न होने के बाद कहीं ऐसा नहीं लग रहा कि केंद्रीय स्तर पर भाजपा नीत गठबंधन को कोई पार्टी या गठबंधन चुनौती देने की स्थिति में है । कुछ राज्यों में जरूर विपक्षी दलों ने आपसी तालमेल बनाया है लेकिन केंद्रीय स्तर पर ऐसा लग ही नहीं रहा । कांग्रेस चाहती तो एक चुनौती दी जा सकती थी लेकिन कांग्रेस ने शायद यह सोच रखा है कि भले ही पार्टी समाप्त हो जाए लेकिन पार्टी का नेतृत्व राहुल और प्रियंका जैसे लोगों को ही दिया जाएगा जिनके पास ना राजनीतिक विचार है ना राजनीतिक नेतृत्व की क्षमता है ना देश के लिए कोई विजन है । स्थिति यह है कि आज देशभर में कांग्रेस को कोई गंभीरता से लेने को तैयार नहीं है । वह तो शुक्र समझो कि हिंदी भाषी राज्यों में दो राज्यों में क्षेत्रीय पार्टियों ने कांग्रेस को पता नहीं किस मजबूरी के चलते या राजनीतिक नासमझी के चलते कुछ सीट दे दीं । जिससे थोड़ा बहुत कांग्रेस का वजूद दिख रहा है अन्यथा पूरे उत्तरभारतीय इलाकों से कांग्रेस गायब है । इस बार दक्षिण का भी और पूर्वोत्तर का भी यही हाल दिखाई दे रहा है । बिहार में लालू प्रसाद यादव ने बहुत चालाकी के साथ कांग्रेस को वह सीटें देकर कांग्रेस के सिर पर अहसान रख दिया जिन सीटों को राष्ट्रीय जनता दल किसी भी कीमत पर जीत ही नहीं सकता था । लेकिन कांग्रेस को छप्पड़ फाड़ फायदा उत्तर प्रदेश में हुआ । उत्तर प्रदेश में कांग्रेस बस अमेठी और रायबरेली में बची है बाकी पूरे उत्तर प्रदेश में ना कांग्रेस पार्टी का कोई संगठन है और ना कांग्रेस के पास कार्यकर्ता हैं । लेकिन उसके बाद भी समाजवादी पार्टी ने उसको 17 सीटें देकर खुद समाजवादियों को चौंका दिया ।
सबसे बड़ी बात जो देखने में आ रही है कि विपक्ष के अधिकांश नेता या तो घर बैठे हैं या ट्विटर ट्विटर खेल रहे हैं या फेसबुक पर चुनिंदा पोस्ट डाल रहे हैं । बड़ी रैली और बड़े रोड शो से बच रहे हैं । शायद उनको यह फीडबैक अपने पार्टी जनों से मिल रहा है की रोड शो या रैलियां असफल हो जाएंगी इसलिए वह चुनिंदा जगहों पर ही जाकर अपनी बात कह रहे हैं या फिर प्रेस कांफ्रेंस बुलाकर भाजपा पर हमला करते हैं । इसके विपरीत बीजेपी के तमाम नेताओं ने बड़ी-बड़ी रैलियां और बड़े-बड़े रोड शो किये हैं।
इस चुनाव में सबसे बड़ा फायदा एआईएमआईएम के असद्दुदीन ओवैसी को होता दीख रहा है। उन पर कांग्रेस सहित सम्पूर्ण विपक्ष भाजपा की बी टीम होने का आरोप लगाता रहा है । इससे उनको हमेशा नुकसान भी हुआ है लेकिन इस बार मजबूरी ऐसी पड़ी कि राहुल गांधी को ओवैसी और ओवैसी को राहुल गांधी की जरूरत पड़ी। दरअसल वायनाड में राहुल गांधी की नाजुक स्थिति देख कांग्रेस ने ओवैसी की ओर देखा । उधर भाजपा ने असद्दुदीन ओवैसी के खिलाफ मजबूत प्रत्याशी उतार दिया तो असद्दुदीन को भी कांग्रेस से आस लगी । फिलहाल दोनों पिछली बातें छोड़ एक दूसरे की मदद करते दिख रहे हैं। इससे असद्दुदीन को भले लोकसभा में सीटें और न मिलें लेकिन उनके उपर से भाजपा की बी टीम होने का दाग अवश्य धुल जायेगा।
प्रथम चरण के मतदान का परिणाम क्या होगा इस अटकल बाजी में जाना अभी उचित नहीं है और हमें 4 जून तक इसकी प्रतीक्षा करनी चाहिए । हालांकि उत्तर प्रदेश में जिस तरीके से शुरुआत हुई है उससे यह लगता है कि पिछली बार से अधिक सीटें बीजेपी जीत जाए तो कोई आश्चर्य नहीं होगा ।
विपक्ष जिस तरीके से चुनाव प्रचार कर रहा है ऐसा लगता है कि विपक्ष मन ही मन मान चुका है कि एनडीए की सरकार की दोबारा वापसी हो रही है । 4 जून को बस यह तय होना है कि एनडीए को कितनी सीटें मिलती हैं ।
यदि क्षेत्रीय दलों ने शुरू में कांग्रेस को बाहर रखकर एकता बनाई होती और नीतीश , ममता या शरद पवार में से किसी एक को नेता मान लिया होता तो शायद ज्यादा मजबूती से वह मोदी सरकार को चुनौती दे सकते थे । उन्होंने गठबंधन में कांग्रेस को शामिल करके गलती करी । कांग्रेस ने सभी छोटी पार्टियों को भ्रम में रखा । कांग्रेस इस पर आमादा थी कि गठबंधन का नेतृत्व राहुल गांधी जैसे अपरिपक्व नेता को ही सौंपा जाए । इसी के चलते विपक्षी एकता न हो पाई।
जब झारखंड और दिल्ली के मुख्यमंत्री को गिरफ्तार किया गया था तब ऐसा लगा था कि शायद विपक्ष इसको मुद्दा बना ले लेकिन अदालत में जिस तरीके से केंद्रीय एजेंसियों ने केजरीवाल और हेमंत सोरेन के खिलाफ मजबूत सबूत पेश किया उसके बाद कांग्रेस सहित सभी विपक्षी पार्टियों ने इन दोनों की गिरफ्तारियों से दूरी बना ली । दिल्ली के मुख्यमंत्री केजरीवाल ने संपूर्ण विपक्ष को बदनाम कर दिया । वह इस हद तक चालांकि पर उतर आए हैं कि जेल में रोजाना कई कई अंडे खाकर , घर से मीठे फल और अत्यधिक चिकनाई युक्त खाना मंगवा कर अपना कोलेस्ट्रॉल लेवल और शुगर लेवल बढ़ाने का एक चालाक प्रयास कर रहे हैं जिससे उन्हें जल्दी ही जमानत मिल जाए । पता नहीं क्यों यह सब नेता जनता को बेवकूफ समझते हैं । इन चालाकियों से इनका और असली चेहरा जनता के सामने आ रहा है । सच यह है कि केजरीवाल आज विपक्ष पर धब्बा है और इसीलिए अब कांग्रेस सहित अधिकांश पार्टियों ने अरविंद केजरीवाल की गिरफ्तारी से दूरी बना रखी है।
राहुल गांधी पिछले कई सालों से एक निबंध पढ़ रहे हैं । मोदी के यार , लोकतंत्र खतरे में , संविधान खतरे में , समझ में नहीं आ रहा कि उनके स्क्रिप्ट राइटर को कोई दूसरा निबंध नहीं लिखना आ रहा या राहुल गांधी किसी दूसरे निबंध को याद नहीं कर पा रहे । स्थिति यह है कि जनता जब टीवी पर भी उनके बातों को सुनती है तो गांव का आम आदमी भी सिर्फ हंसता है । क्योंकि सबको पता है कि नरेंद्र मोदी वह शख्स है जिसके रहते ना संविधान खतरों में पड़ सकता है ना लोकतंत्र खतरे में पड़ सकता है आखिर इसी लोकतंत्र के चलते एक बेहद गरीब घर में पैदा होने के बाबजूद वो इस उच्च पद पर पंहुच सके हैं ।
जहां तक संविधान का सवाल है तो कांग्रेस ने अनेक बार संविधान को तोड़ा और मरोड़ा है , उसमें बदलाव किया है । कांग्रेस जिसने संविधान को स्थगित कर आपातकाल लगाया था उसको तो किसी पर भी संविधान को खतरे में डालने की बात करने का या लोकतंत्र को खतरे में डालने की बात करने का अधिकार ही नहीं है ।
अब चुनाव जैसे-जैसे अपने अंतिम चरण की ओर बढ़ेगा बदजुबानियां बढ़ सकती है । क्योंकि मुद्दे हैं नहीं। यदि बेरोजगारी और महंगाई यह दो शब्द ना होते तो शायद विपक्षी नेताओं के पास भाषण करने के लिए कुछ होता ही नहीं । यदि फिर भी खाने पीने की चीजों को या आम सहूलियत और पेट्रोलियम पदार्थों को देखा जाए तो इसमें कोई दो राय नहीं कि मंहगाई नियंत्रण में है । भारत ही नहीं पूरी दुनिया में किसी भी लोकतांत्रिक देश में चुनाव होते हैं तो विपक्ष के भाषणों में मंहगाई और बेरोजगारी – इन दो शब्दों का जिक्र अवश्य होता है। हालांकि इसका मतलब यह नहीं है कि मैं यह कह रहा हूं कि भारत में बेरोजगारी नहीं है लेकिन मुझे यह कहने में कोई संकोच नहीं कि मोदी सरकार के कार्यकाल में नौकरियों के अवसर बड़े हैं , नौकरियां बढ़ी है , फिर भी बेरोजगारी बढ़ रही है तो इसका बड़ा कारण है तेजी से बढ़ती जनसंख्या।
खैर फिलहाल इन मुद्दों पर सत्ता पक्ष और विपक्ष को ही खेलने दो । फिलहाल यह तो निश्चित लगता कि जनता एक बार फिर मोदी को सरकार बनाने का अवसर देने का मन बना चुकी है, बस प्रश्न है कि कितनी सीटों के साथ ?