संसद का विशेष सत्र - विपक्ष हैरान और परेशान
इधर विपक्षी दलों का गठबंधन मुंबई की बैठक में कोई फैसला नहीं ले पा रहा था , उधर भाजपा की केंद्र सरकार ने संसद के विशेष क्षेत्र का पासा फेंक दिया। सरकार ने अभी तक यह नहीं बताया है की विशेष सत्र का एजेंडा क्या होगा । बस इतना पता है की 18 से 22 सितंबर तक 5 दिन संसद का विशेष सत्र होगा।
विपक्ष पहले ही आपसी झंझटों में व्यस्त था कि मीटिंग के मध्य ही उसे विशेष सत्र का पता चला तो वह परेशान भी था और हैरान भी था । विपक्ष की हैरानी और परेशानी का कारण भी समझ में आता है । मोदी सरकार की एक विशेषता रही है और वह है चौंकाने वाले फैसले लेना । आप याद करिए जब धारा 370 हटाई थी पूरा देश तरह-तरह के कयास लगा रहा था कि संसद में सरकार कौन सा बिल पेश करने वाली है । किसी को विश्वास ही नहीं था कि धारा 370 को हटाने जैसा बड़ा फैसला सरकार कर सकती है । सरकार ने न केवल वह फैसला किया बल्कि उसे पूरी तैयारी के साथ लागू किया और आज जम्मू एंड कश्मीर भारतीय संविधान के अंतर्गत भारत का अभिन्न अंग है । जबकि कांग्रेस सहित तमाम दलों ने कश्मीर को भारत के संविधान के अंतर्गत भारत का अभिन्न अंग कभी नहीं माना बल्कि कश्मीर के अपने संविधान के साथ उसे भारत का अभिन्न अंग माना ।
अब विशेष सत्र को लेकर चर्चाओं का दौर पूरे देश में जारी है ।
प्रधानमंत्री मोदी शुरू से ही एक देश एक चुनाव पर जोर देते रहे हैं । कयास लगाया जा रहा है कि विशेष सत्र में मोदी इस दिशा में कोई कदम उठा सकते हैं। सरकार ने पूर्व राष्ट्रपति और दलित नेता रामनाथ कोविन्द की अध्यक्षता में एक उच्च स्तरीय समिति भी नियुक्त कर दी है । इससे यह आशंका और बलवती हो उठी है । हालांकि इस उद्देश्य की प्राप्ति की जो संसदीय प्रकिया है वह इतनी जटिल बतायी जाती है कि अगले पांच माह में उसे पूरा करना टेड़ी खीर है । दूसरी ओर यह भी माना जाता है कि मोदी ऐसे ही टास्क को पूरा करने बाले व्यक्ति हैं।
हां यह सम्भव है कि नबम्वर दिसम्बर में जिन राज्य विधानसभाओं के चुनाव होने हैं उनके चुनाव लोकसभा चुनाव के साथ कराने का कोई संसदीय रास्ता निकाल लिया जाये और पूरे देश के लिए उसे लागू करने की दिशा में काम चलता रहे । यह सही भी होगा जब फरबरी के आसपास लोकसभा चुनाव होने ही हैं तो नबम्वर दिसम्बर में राज्य विधानसभा चुनाव का कोई औचित्य नहीं ।
एक देश एक चुनाव ऐसा मुद्दा है जिसे देश की ज्यादातर आबादी का समर्थन प्राप्त हो सकता है । आम नागरिक रोज रोज चुनाव नहीं चाहता। देश में रोज-रोज चुनाव अनावश्यक खर्च को जन्म देते हैं । सरकारी मशीनरी को अनावश्यक उलझाए रहते हैं और राजनीतिक दलों को भी जनहित और देशहित में कड़े फैसले लेने से रोकते हैं। भाजपा यदि प्रस्ताव लाती है तो कांग्रेस और वाम दलों को समझदारी का परिचय देते हुए इसका समर्थन करना चाहिए
सरकार के इस प्रस्ताव का वो राजनीतिक समाज पुरजोर विरोध करेगा जो राजनीतिक दल के रूप में पारिवारिक व्यापारिक कम्पनियां बनाये बैठे हैं। भारत में ऐसे दल रूपी व्यापारिक कम्पनियों की कमी नहीं है। रोज रोज चुनाव इन दल रूपी कम्पनियों को अपने जातिय या क्षेत्रीय वोट को बेचकर मोटी रकम कमाने का अवसर उपलब्ध कराता है।
इसके अलावा बिशेष पूजा स्थल अधिनियम और कामन सिविल कोड को लेकर भी चर्चाओं का बाजार गर्म है
लेकिन मुझे इनकी सम्भावना कम दिखाई देती है । कारण साल के अंत में भारत में एक दिवसीय विश्व क्रिकेट प्रतियोगिता का आयोजन है । स्वाभाविक है आयोजक के रूप में भारत की छवि दांव पर होगी। व्यापारिक रूप से भारत का पर्यटन और होटल उद्योग अपने चरम पर होगा। प्रधानमंत्री मोदी बहुत संवेदनशील व्यक्ति हैं वह न तो आयोजक के रूप में भारत की छवि पर आंच आने देंगे और न भारत के उद्योग को व्यापारिक मौकों को गंवाने देंगे।
उपरोक्त दोनों प्रस्तावों का राजनीतिक रूप से सभी विपक्षी दल पुरजोर विरोध करेंगे और यदि प्रदर्शन हिंसक हो गये तो इस प्रतिष्ठित प्रतियोगिता पर नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा।
लेकिन फिर भी चर्चाएं तो गर्म रहेंगी ही । मोदी जी कौन सा फैसला लेने बाले हैं , यह अनुमान देश भर में किसी के लिए भी लगाना मुश्किल है । हमारे साथ आप भी कयास लगाते रहिये और प्रतीक्षा करते रहिए संसद के विशेष सत्र की
सबसे ज्यादा परेशान और हैरान तो कांग्रेस सहित समूचा विपक्ष है कि वो एक संयोजक का नाम और आईएनडीआईए का लोगो तय नहीं कर पा रहे और आपस में भिड़े पड़े हैं जबकि मोदी पता नहीं किस ब्रह्मास्त्र का प्रयोग करने जा रहे हैं।