कविता

एक आम मतदाता हुं मैं,

बनाता हुं नेताओं को मैं,

बिगाड़ता भी नेताओं को मैं,

अपराधियों को भी नेता बनाता हुं मैं,

भ्रष्टों को भी सिरमौर बनाता हुं मैं,

बहकावे में आ, जाति में बंटता हुं मैं,

बहकावे में  नेताओं के आता हुं मैं,

हर नेता से छला जाता हुं मैं,

बनाता भी मैं, बिगाड़ता भी मैं,

नेताओं को भला बुरा कहता भी मैं,

लोकतंत्र के मंदिर का भगवान हुं मैं,

नेताओं द्वारा समय समय पूजा जाता हुं मैं,

लेकिन फिर भी कष्टों में जीता हुं मैं,

आखिर एक अभागा मतदाता हुं मैं ।।

ऐ फूल तुम कितने साहसी हो,

सुर्य की किरणों के फूटने से पहले,

चढ़ गये हो ऐसे शिखरों पर,

जिनका रास्ता कांटों से भरा हो।।

न तुम थके हो,

न हारे हो,

उतने ही खूबसूरत हो जितना तुम्हे होना था ।।

एक मैं हुं आज का युवक,

न चढ़ा हुं, न चला हुं,

लेकिन  इतना थका हुं,

मानो गगन तक चढ़ा  हुं,

निराश हुं  वेबस हुं,

नहीं जानता  हुं कि,

राह किधर है,

शिखर किधर है,

लेकिन  प्रण लेता हुं,

तुम्हें देखकर,

चलुंगा भी, चढ़ुंगा भी

ऐसे शिखरों पर

जिनका रास्ता कांटों से भरा हो  । ।

कांटों में भी फूल खिलाएं

इस धरती को स्वर्ग बनाऐं

जात धर्म को भूल हमेशा

हर व्यक्ति को गले लगाऐं

मिलजुलकर हम सभी गण

भारत मां की स्वतंत्रता का पर्व मनाऐं

भारत माता की जय

तूफान में किश्ती है कहां 

दुनिया में मानवता  है रहती कहां

खुद मानवता पूछ रही , मेरा पता कहां

फिर  भी दुनिया खोज रही 

बताओ दुनिया बालों 

मानवता है कहां

मैं एक चिराग हुं

तेज हवाएं मुझको बुझाना चाहती हैं

मैं जानता हुं

मेरी नियति क्या है

मुझे बुझना है

लेकिन कब ?

चारों ओर उजियारा फैलाकर

कुछ लोग

जंगलों में भटक रहे हैं

जहरीले सांपों को पकड़ रहे हैं

उनके जिस्म से जहर निचोड़ रहे हैं

फिर निश्चिंत हो सो रहे हैं

लेकिन वो भूल रहे हैं

मनुष्य के भेष में कुछ सांप

शहरों में भी घूम रहे हैं

वे धर्म को बेच

इतिहास को गंदा

मानवता को नीलाम कर रहे हैं

समाज के बीच

नफरतों का बीज वो रहे हैं

मैं आश्चर्यचकित हुं

फिर वे लोग जंगलों में

क्यों भटक रहे हैं ।।

3 thoughts on “Poems”

  1. ANOTHER good poem – BANATA BHI HUN , BIGADTA BHI HUN , PUJA JATA BHI HUN , CHHALA JATA BHI HUN – MAIN ABHAGA MATDATA

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