मणिपुर में घमासान, क्या ये है समाधान

मणिपुर में 3 मई से शुरू हुई हिंसा हालांकि अब नियंत्रण में आ रही है लेकिन हालात अभी भी तनावपूर्ण है । और यह तब तक रहेंगे जब तक की हिंसा के मूल कारणों की तह में जाकर उनका समाधान नहीं किया जाता ।
मणिपुर की हिंसा को समझने के लिए हमें पहले कुछ बातों पर गौर करना होगा ।
मणिपुर 1949 में भारत का हिस्सा बना। मणिपुर में उस समय मैतेयी समुदाय को अनुसूचित जनजाति का दर्जा प्राप्त था । लेकिन कांग्रेस की सरकारों ने एक षड्यंत्र के तहत मैतेयी समुदाय को जनजाति समुदाय से बाहर कर दिया । इसका एक बड़ा कारण यह माना जाता है कि मैतेयी समुदाय बहुसंख्यक रूप से हिंदू है । मणिपुर में मैतेयी समुदाय की आबादी 53 परसेंट है । दूसरी ओर कुकी और नागा समुदाय हैं जिनकी आबादी 40% है । बहुसंख्यक नागा और कुकी ईसाई हैं । मणिपुर में कांग्रेस सरकारों ने बड़ी संख्या में रोहिंग्या मुसलमानों को भी बसा दिया है ।
मणिपुर में 90 फ़ीसदी इलाका पहाड़ी है जबकि 10 फ़ीसदी हिस्सा घाटी का है । मैतेयी समुदाय घाटी में रहता है जबकि नागा और कुकी पहाड़ी क्षेत्रों में रहते हैं । कांग्रेस सरकारों ने एक षड्यंत्र के तहत एक कानून बना दिया की घाटी में बसे मैतेयी समुदाय के लोग ना तो पहाड़ों पर जमीन खरीद सकते हैं और ना बस सकते हैं । इसके विपरीत पहाड़ों पर रहने वाले नागा और कुकी घाटी में जमीन भी खरीद सकते हैं और बस भी सकते हैं ।
मतलब 53 परसेंट आबादी मात्र 10 परसेंट हिस्से में रहने को मजबूर है । जबकि 40 परसेंट आबादी जोकि बहुसंख्यक रुप से ईसाई हैं वह पहाड़ हो या घाटी , सब जगह रहने के लिए स्वतंत्र हैं । यह पिछली सरकारों ने षड्यंत्र रचा इसीलिए मैतेयी समुदाय खुद को अनुसूचित जनजाति का दर्जा दिलाना चाहता है । जिससे मैतेयी समुदाय को भी पहाड़ों पर जमीन खरीदने और बसने का अधिकार मिल जाए । केंद्र में भाजपा से पहले की सरकारों का यह षड्यंत्र था कि मणिपुर के अधिकांश हिस्से पर ईसाई समुदाय का कब्जा रहे । इसीलिए वह किसी भी कीमत पर मैतेयी समुदाय को अनुसूचित जनजाति का दर्जा देने को तैयार नहीं रहीं । मैतेयी समुदाय इसके लिए अदालती लड़ाई लड़ रहा था ।

20 अप्रैल 2023 को मणिपुर हाई कोर्ट ने मणिपुर सरकार को आदेश दिया कि वह एक निश्चित समय सीमा के अंदर मैतेयी समुदाय को अनुसूचित जनजाति का दर्जा देने की मांग पर फैसला करें ।

इस बात पर मणिपुर में नागा और कुकी समुदाय भड़क गए । बताया यह भी जाता है कि इनको भड़काने में चर्च का बहुत बड़ा हाथ था । साथ ही मणिपुर में बसे रोहिंग्या मुसलमानों ने भी आग में घी डालने का काम किया ।

मणिपुर हाई कोर्ट के इस आदेश के खिलाफ 3 मई को कुकी समुदाय ने आदिवासी एकता मार्च का आयोजन किया । इसी दौरान मणिपुर में व्यापक स्तर पर हिंसा भड़क उठी । माना जाता है अभी तक 100 से ज्यादा लोग मारे जा चुके हैं । जबकि 50,000 से ज्यादा लोग शरणार्थी शिविरों में रह रहे हैं । मणिपुर के वर्तमान मुख्यमंत्री मैतेयी समुदाय से ही आते हैं शायद इसलिए ही कांग्रेस सहित अनेक विपक्षी दल उनके इस्तीफे की मांग कर रहे हैं । यदि देखा जाए तो मैतेयी समुदाय की मांग जायज है । उनकी आबादी ज्यादा होने के बाद भी वह मणिपुर के मात्र 10% इलाके में रहने को मजबूर हैं । जबकि 40% आबादी के लिए मणिपुर का 90% इलाका पिछली सरकारों ने षड्यंत्र के तहत रिजर्व कर दिया ।
सरकार को इस समस्या के मूल समाधान को खोजना होगा । कांग्रेस सरकारें निश्चित रूप से मणिपुर की समस्या का समाधान नहीं करेंगी फिर वह चाहे राज्य की सरकार हो या केंद्र की सरकार हो । भाजपा से मैतेयी समुदाय को यह आशा है कि वह मैतेयी समुदाय की परेशानी को समझेगी और उसका समाधान करेगी ।


अच्छी बात यह है कि मणिपुर में जैसे ही हिंसा शुरू हुई केंद्र सरकार तत्काल सक्रिय हो गई । खुद गृह मंत्री अमित शाह इंफाल पहुंचे और उन्होंने खुद हालात का जायजा लिया । उन्होंने मणिपुर सरकार को विश्वास दिलाया कि शांति बहाली के लिए राज्य सरकार को जो भी जरूरत होगी , केंद्र सरकार उपलब्ध कराएगी । राज्य सरकार ने जितने भी सुरक्षा बल मांगे केंद्र सरकार ने तत्काल उतने ही सुरक्षा बल मणिपुर सरकार को उपलब्ध कराएं । ताकि हिंसा पर तत्काल काबू पाया जा सके। इन उपायों का परिणाम भी निकला और मणिपुर की व्यापक हिंसा फिलहाल नियंत्रण में है ।
मणिपुर समस्या के समाधान के लिए मणिपुर हाई कोर्ट के निर्देशों पर गंभीरता से केंद्र और राज्य सरकार को विचार करना चाहिए । यदि मैतेयी समुदाय को अब भी न्याय नहीं मिला तो कभी नहीं मिलेगा । क्योंकि केंद्र में भाजपा के अलावा जो भी सरकार आएगी वह निश्चित रूप से तुष्टीकरण वाली सरकार होगी जो किसी भी कीमत पर मणिपुर के ईसाई समुदाय के विरुद्ध नहीं जाएगी , और मणिपुर के मैतेयी समाज को न्याय नहीं दे सकेगी ।
उम्मीद है केंद्र गंभीरता से विचार करेगा और नागा , कुकी और मैतेयी समाज को एक मंच पर लाकर समस्या का ऐसा समाधान निकालेगा जो सभी को मंजूर होगा ।समाधान ऐसा ही होना चाहिए जो मणिपुर के सभी समाजों को स्वीकार हो लेकिन यदि कोई हठ धर्मी दिखाएं तो सरकार को शक्ति दिखाने से भी बाज नहीं आना चाहिए । अच्छा तो यह हो कि मणिपुर में यदि संभव हो तो उस कानून को रद्द कर दिया जाए जिसके तहत घाटी के रहने वाले मैतेयी पहाड़ों पर न जमीन खरीद सकते हैं और ना बस सकते हैं । बल्कि ऐसा कानून लागू कर दिया जाए कि मणिपुर में रहने वाला कोई भी व्यक्ति फिर वह चाहे नागा हो कुकी हो या मैतेयी हो , वह पहाड़ पर भी जमीन खरीद सकता है और बस सकता है और घाटी में भी जमीन खरीद सकता है और बस सकता है । यदि ऐसा कानून लागू हो जाएगा तो संभवत सबको बराबरी का दर्जा मिल जाएगा और समस्या का समाधान भी हो जाएगा । आशा है केंद्र और राज्य सरकार गंभीरता से मंथन करेंगी और समस्या का समाधान निकालेंगी ।

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