किसका खेल बिगाड़ेंगे राज्यों के
चुनाव परिणाम ?
पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव के लिए अब सभी राजनीतिक दल पूरी तरह से तैयार हैं । लगभग सभी राज्यों की विधानसभा सीटों के लिए , सभी दलों ने अपने-अपने उम्मीदवार घोषित कर दिए हैं । चंद दिनों में चुनाव प्रचार भी अपने चरम पर होगा ।
सिद्धांततः मैंने अपने पिछले लेख में भी इन चुनाव का विरोध किया था । मेरा मानना है कि लोकसभा चुनाव से 6 महीने पहले और 6 महीने बाद होने वाले विधानसभा चुनाव को लोकसभा के साथ ही कराए जाने की व्यवस्था होनी चाहिए। इससे सरकारी पैसे और सरकारी श्रम की बहुत बचत होगी । फिलहाल चुनाव हो रहे हैं तो चर्चा भी होगी ।
मिजोरम , तेलंगाना , राजस्थान , मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ यह पांच राज्य है जहां विधानसभा चुनाव होने जा रहे हैं । वैसे तो सभी राज्यों के चुनाव महत्वपूर्ण होते हैं लेकिन 2024 के लोकसभा चुनाव की केंद्रीय राजनीति के दृष्टिकोण से राजस्थान और मध्य प्रदेश बहुत महत्वपूर्ण हैं ।
मिजोरम ईसाई बहुल राज्य है । मिजोरम चुनाव में मणिपुर हिंसा निश्चित रूप से एक मुद्दा होगी। अभी पिछले दोनों जब मणिपुर में कुकी समुदाय ने व्यापक रूप से हिंसा की थी और हिंदू मैत्रेई समाज के घरों को तोड़ा गया था और लोगों को जलाया गया था तब भी मिजोरम में रहने वाले मैत्रेई हिंदू समाज को मिजोरम छोड़ना पड़ा था । उन्हें डर था कि मिजोरम में भी उनके खिलाफ हिंसक कार्यवाही हो सकती है । लेकिन केंद्र सरकार और राज्य सरकार के प्रयासों से मिजोरम में किसी भी प्रकार के हिंसा नहीं हुई । इसके लिए दोनों ही सरकारों की प्रशंसा की जानी चाहिए । बहुत संभावना यही है कि वहां किसी क्षेत्रीय दल की सरकार बनेगी और भाजपा समर्थित सरकार बनने की संभावना बहुत कम लगती है
यूं तो छत्तीसगढ़ में भाजपा ने काफी लंबे समय लगातार शासन किया है , लेकिन पिछले चुनाव में छत्तीसगढ़ के नक्सलवादियों ने एकजुट होकर कांग्रेस का समर्थन किया था । उनके डर से बड़ी संख्या में ग्रामीण और अर्धशहरी क्षेत्र में मतदाताओं ने कांग्रेस को वोट डाला था । इसके अलावा चर्च ने भी महत्वपूर्ण रोल निभाया था । छत्तीसगढ़ की तमाम चर्चों ने भाजपा के विरुद्ध मतदान करने का एक अभियान चलाया था । नतीजा यह हुआ था कि चुनाव में भाजपा पराजित हुई । स्थितियां फिर ऐसी ही हैं । नक्सलवादी और चर्च किसी भी कीमत पर नहीं चाहते कि छत्तीसगढ़ में भाजपा की सरकार बने । इसलिए दोनों ताकतें एक बार फिर कांग्रेस के पीछे खड़ी हैं । छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल और उनके पिताजी अपने हिंदू विरोधी रवैये के लिए खास तौर से जाने जाते हैं । बहुत संभावना यह मानी जा रही है कि छत्तीसगढ़ में कांग्रेस एक बार फिर अपने सरकार बनाने में कामयाब होगी ।
तेलंगाना में मुख्य मुकाबला कांग्रेस और के सी आर की पार्टी में होगा। भाजपा मुकाबला त्रिकोणीय बनाने को प्रयासरत हैं लेकिन कितनी सफल होगी , कहना मुश्किल है। सम्भावना यही लगती है कि के सी आर फिर सरकार बनाने में कामयाब होंगे।
पिछले काफी लंबे समय से राजस्थान में हर चुनाव में सरकार बदलने का एक इतिहास रहा है। उस दृष्टिकोण से देखें तो इस बार भाजपा की सरकार बननी चाहिए । लेकिन जमीनी परिस्थितियां बहुत आसान नहीं है । भाजपा के अंदर गुटबाजी चरम पर है । भाजपा पिछले काफी लंबे समय से वसुंधरा राजे सिंधिया से अपना पीछा छुड़ाना चाहती है । सही बात यह है की अधिकांश भाजपाइयों को लगता है की वसुंधरा राजे सिंधिया भाजपा पर बोझ हैं । फिलहाल यह तो साफ है कि भाजपा बसुंधरा को मुख्यमंत्री पद का चेहरा घोषित नहीं करेगी। कयास लगाए जा रहे हैं कि बहुमत की स्थिति में भरतपुर राजघराने की राजकुमारी दिया कुमारी राजस्थान की नई मुख्यमंत्री हो सकती हैं । दिया कुमारी कार्यकर्ताओं और जनता के बीच बहुत लोकप्रिय हैं । आमतौर पर वह जनता के बीच रहना पसंद करती हैं । भाजपा नेतृत्व को लगता है की दिया कुमारी के नाम पर भाजपा के कार्यकर्ता एकजुट हो सकते हैं । खास बात यह है दिया कुमारी को वसुंधरा राजे सिंधिया ने ही भाजपा में शामिल कराया था । वैसे भाजपा में और भी कई दावेदार हैं जैसे केंद्रीय मंत्री गजेंद्र शेखावत , पूर्व केंद्रीय राज्य मंत्री राजवर्धन सिंह राठौड़ ।
मध्य प्रदेश का चुनाव इस बार बहुत रोचक लग रहा है । आपको याद होगा पिछली बार मध्य प्रदेश में कांग्रेस ने बहुमत प्राप्त किया था और कमलनाथ मुख्यमंत्री बने थे लेकिन भाजपा ने कमलनाथ की सरकार गिरा दी थी । कमलनाथ तब से लगातार मध्य प्रदेश में जनता के बीच सक्रिय हैं । खास बात यह है कि वह मध्य प्रदेश में सरकार बनाने के खातिर उदार हिंदुत्व की राह पर चलने के लिए अपने केंद्रीय नेतृत्व पर भी दबाव बनाए हुए हैं । वह केंद्रीय नेतृत्व द्वारा मुस्लिम तुष्टिकरण की नीतियों को लेकर अपनी नाराजगी भी जताते रहे हैं । उनको लगता है केंद्रीय नेतृत्व जितना मुस्लिम तुष्टिकरण की बात करेगा कांग्रेस सत्ता से उतनी ही दूर होगी । कहने वाले लोग यह भी कहते हैं कि कमलनाथ किसी भी केंद्रीय नेता का मध्य प्रदेश में चुनावी दौरा नहीं चाहते । वह अपनी एक उदारवादी हिंदू की छवि के सहारे भाजपा को पराजित करना चाहते हैं । भाजपा में शिवराज सिंह चौहान पिछले काफी समय से मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री हैं । उनकी सरकार की छवि हमेशा स्वच्छ रही है । खुद शिवराज सिंह के ऊपर कभी आरोप नहीं लगे । बस उनकी बढ़ती उम्र उनके दावे को कमजोर करती है। चर्चा यह भी है कि ज्योतिराजे सिंधिया इस बार मध्य प्रदेश की कमान संभालना चाहते हैं । लेकिन यह सब कुछ निर्वाचित विधायकों और हाईकमान के रूख से तय होगा।
मिजोरम तेलंगाना और छत्तीसगढ़ के चुनाव नतीजे केंद्रीय राजनीति को बहुत प्रभावित नहीं करेंगे । मुख्य प्रश्न यह है कि यदि भाजपा पांच राज्यों में से राजस्थान और मध्यप्रदेश में चुनाव हार जाती है तब 2024 चुनाव में केंद्रीय राजनीति पर क्या असर पड़ेगा ? और यदि भाजपा जीत जाती है तब 2024 की केंद्रीय राजनीति पर क्या असर पड़ेगा ?
यदि भाजपा इन राज्यों में चुनाव हार जाती है तो केंद्रीय राजनीति पर दो प्रभाव पड़ेंगे एक ओर भाजपा नेतृत्व दबाब में आ जायेगा तो दूसरी ओर इंडी एलायंस में कांग्रेस और मजबूत होकर उभरेगी । वह एलायंस में शामिल अन्य दलों से अपनी शर्तों पर बात करेगी । इससे एलायंस में शामिल सपा , जद , राजद , टीएमसी , शिवसेना उद्धव गुट और एनसीपी जैसी पार्टियों को कांग्रेस के लिए ज्यादा सीटें छोड़ने को मजबूर होना पड़ सकता है। कांग्रेस इंडी एलायंस पर राहुल गांधी को प्रधानमंत्री पद का चेहरा घोषित करने को बाध्य कर सकती है । ऐसे में कांग्रेस की शर्तें न मानने की स्थिति में इंडी एलायंस बिखर भी सकता है ।
दूसरी स्थिति यह कि मान लो राजस्थान और मध्यप्रदेश में भाजपा जीत जाती है तो भाजपा का मनोबल तो बढ़ेगा ही , इंडी एलायंस में क्षेत्रीय दलों की स्थिति मजबूत हो जायेगी । क्षेत्रीय दल कांग्रेस पर दबाव बनाने की स्थिति में होंगे । इस स्थिति में पहले से ही साथी दलों का दबाब झेल रही कांग्रेस उनकी शर्तें मानने को मजबूर होगी । इससे कांग्रेस के विस्तार के इरादों को बड़ा झटका लगेगा। यदि कांग्रेस क्षेत्रीय दलों की शर्तों को नहीं मानेगी और इंडी एलायंस से बाहर निकलती है तो उस पर भाजपा की मदद का आरोप लगेगा
कुल मिलाकर स्थिति यह लगती है यदि भाजपा राजस्थान और मध्यप्रदेश हारती है तो इंडी एलायंस के क्षेत्रीय दलों को नुकसान होगा और यदि भाजपा इन दोनों राज्यों में जीतती है तो इंडी एलायंस के क्षेत्रीय दलों को फायदा होगा।
आज चर्चा यहीं तक । आगे चर्चाओं के लिए पढ़ते रहिए charchakavishay.com लिया ।
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