ज्ञानवापी परिसर - जांच से डर क्यों ?
काफी लंबी जद्दोजहद और कानूनी लड़ाई के बाद अंततः वाराणसी स्थित ज्ञानवापी परिसर का एएसआई सर्वे शुरू हो ही गया । ज्ञानवापी परिसर कई और परिसरों की तरह बहुत लंबे समय से विवादित रहा है । हिंदू और मुस्लिम दोनों ही पक्ष इसे अपना मानते रहे हैं । दोनों का ही यह कहना है की यह उन्होंने ही बनवाया है।
स्वाभाविक है कि विवाद के निपटारे के लिए परिसर की जांच की जाए । आज के आधुनिक युग में दुनिया में ऐसी ऐसी तकनीक का आविष्कार हो चुका है कि बिना खुदाई और तोड़फोड़ के परिसर के नीचे या अंदर क्या है इसको आसानी से जांचा जा सकता है । जब ऐसी तकनीक हमारे पास है तो उसका इस्तेमाल करके विवाद का जल्द निपटारा क्यों ना कर दिया जाए ।
कुछ अन्य परिसरों की तरह , इस परिसर विवाद की जांच का भी एक पक्ष लगातार विरोध करता रहा है । उस पक्ष को देश के एक राजनीतिक वर्ग का भी समर्थन हमेशा रहा है । इस राजनीतिक वर्ग में हर तरह के लोग हैं जिनके अपने अपने राजनीतिक हित हैं । यह राजनीतिक वर्ग हमेशा यह चाहता है कि जांच ना हो और समाज के दोनों वर्ग आपस में लड़ते रहें क्योंकि इसी लड़ाई में इस राजनीतिक वर्ग का हित है । यह राजनीतिक वर्ग कभी राजनीतिक स्तर पर कभी प्रशासनिक बहाने से तो कभी न्यायिक व्यवस्था में बैठे अपने शुभचिंतकों की मदद से जांच में हमेशा रोड़ा अटकाता रहा है ।
बड़ा सीधा सा प्रश्न है कि यदि आपको यह पूर्ण विश्वास है कि यह परिसर आपका ही है , आपने ही इसे बनवाया है , तो जांच से डर क्यों ? जांच से सच्चाई सामने आएगी । डर किस बात का ? इस डर या जांच में रोड़े अटकाने के कारण हमेशा यह आशंका रही है कि इस पक्ष को कहीं ना कहीं अपने पक्ष के कमजोर होने का एहसास है या उसे उस सच्चाई का पता है जिसको वह छिपाना चाहता है ।
दूसरे पक्ष का तर्क स्वाभाविक रूप से मजबूत है कि हम बस जांच चाहते हैं । यदि सच आपके साथ है तो परिसर आपका और यदि सच हमारे साथ है तो परिसर हमारा । निश्चित रूप से उसका तर्क सही है । वह सच का सामना करने को तैयार है । जबकि पहला पक्ष कहीं न कहीं सच से डरा हुआ लगता है ।
यह स्थिति किसी भी समाज के लिए अच्छी नहीं है । यह समाज के आपसी भाईचारे में हमेशा बाधक रहेगी । यह भी दुर्भाग्य रहा है कि जांच का आदेश देने में अदालतों ने बहुत समय खराब किया है । हालांकि यह भारतीय न्याय व्यवस्था का ही दुर्भाग्य है । यहां न्याय की बात तो की जाती है लेकिन न्याय समय पर मिल जाए इसकी व्यवस्था के लिए खुद न्यायिक व्यवस्था तैयार नहीं है ।
फिलहाल सभी पक्षों को जांच में सहयोग करना चाहिए । इसी बीच सोशल मीडिया पर भी कुछ वर्गों ने अनर्गल आरोप प्रत्यारोप और बेबुनियाद तथ्यों को डालना शुरू कर दिया है । यह दुखद है और किसी भी पक्ष को इस तरीके की हरकतों से बचना चाहिए जिससे समाज में अनावश्यक उत्तेजना या वैमनस्य फैले । हमें जांच रिपोर्ट की प्रतीक्षा करनी चाहिए । सभी पक्षों को जांच रिपोर्ट का सम्मान करना चाहिए । साथ ही न्यायिक व्यवस्था को भी जांच रिपोर्ट आने के बाद फैसले का जल्द निपटारा करना चाहिए । जिससे समाज में झूठ जल्दी बेनकाब हो , सच सामने आए और समाज में आपसी भाईचारा स्थापित हो ।