चित कांग्रेस क्या आत्ममंथन कर पायेगी?

पांच राज्यों के चुनाव परिणामों के बाद राहुल गांधी समेत पूरा गांधी परिवार और कांग्रेस पार्टी चारों खाने चित नजर आ रहे हैं । कांग्रेस के वरिष्ठ नेता हैरान हैं कि आखिर हुआ क्या  ? मध्यप्रदेश में कांग्रेस काफी मजबूत स्थिति में दिखाई दे रही थी ।  जब की छत्तीसगढ़ में वापसी की उम्मीद  बहुत ज्यादा थी ‌। ऐसे में प्रश्न यह उठता है कांग्रेस की इतनी करारी हार का जिम्मेदार कौन ???

प्रश्न यह है कि क्या कांग्रेस जनों में अभी भी इतनी हिम्मत है कि वह ईमानदारी से अपनी हार का विश्लेषण कर सके ? या मात्र ईवीएम या पर  पार्टी की गुटबाजी को दोषारोपित कर इतिश्री कर लेंगे।

पिछले कुछ समय से यह देखा जा रहा है कि जेएनयू से निकले शहरी नक्सलियों ने गांधी परिवार को चारों ओर से घेर लिया है । आज राहुल गांधी और प्रियंका गांधी के चारों ओर जेएनयू से निकले शहरी नक्सली नजर आते हैं । पता नहीं, वह कौन सी ताकत है जो इन शहरी नक्सलियों का गांधी परिवार के चारों ओर घेरा बना रही  है ? उसका आखिर उद्देश्य क्या है ? क्या वह ताकत कांग्रेस पर कब्जा करना चाहती है या कांग्रेस का सर्वनाश करना चाहती है ?

यदि हम बात मध्य प्रदेश की करें तो शुरुआती दौर में कांग्रेस काफी मजबूत स्थिति में नजर आती थी । मध्य प्रदेश में पार्टी के नेता कमलनाथ सॉफ्ट हिंदुत्व के सहारे पार्टी की नैया पार लगाने में जुटे थे । हालांकि मध्य प्रदेश में ही पार्टी के वरिष्ठ नेता दिग्विजय सिंह उनके पैर उखाड़ने के हर संभव प्रयास कर रहे थे । कमलनाथ की स्थिति उसके बाद भी काफी मजबूत नजर आती थी । बताया यह भी जाता है कि कमलनाथ ने कांग्रेस हाईकमान से अनुरोध किया था कि राहुल गांधी , प्रियंका गांधी सहित कांग्रेस हाई कमान के किसी भी बड़े नेता खास तौर से नक्सलियों से प्रभावित नेताओं का मध्य प्रदेश में कोई कार्यक्रम ना रखा जाए । उनके इस प्रस्ताव से गांधी परिवार के चारों ओर काकस बनाए नक्सली काफी नाराज थे । बताया जाता है उन्होंने कमलनाथ को ही निपटाने के लिए हर संभव प्रयास किया । कुछ कांग्रेसी नेताओं से हिंदू विरोधी बयान दिलवाये गए तो कहीं कांग्रेस के डीएमके जैसे सहयोगियों से हिंदुओं को अपमानित करने वाले और हिंदुओं को धमकी देने वाले बयान दिलवाये गए । इन बयानों का एक ही उद्देश्य था कि कांग्रेस में साफ्ट हिंदुत्व का रूख रखने बाले पराजित हों भले ही इस प्रयास में कांग्रेस का सफाया हो जाये । गांधी परिवार के चारों ओर जमा शहरी नक्सली अपने इस प्रयास में कामयाब हो गए । मध्य प्रदेश में हिंदुओं ने एकजुट होकर भाजपा के पक्ष में मतदान किया । डीएमके नेताओं द्वारा और कुछ कांग्रेस के नेताओं द्वारा हिंदू विरोधी बयानों ने हिंदुओं को एकजुट कर दिया ।

छत्तीसगढ़ में भूपेश बघेल अपने हिंदू विरोधी रूख के लिए पहले से ही चर्चित थे । उनके पिता पिछले पूरे 5 साल हिंदुओं को अपमानित करने वाले बयान देते रहे । बताया जाता है गांधी परिवार के चारों ओर घेरा जमाये शहरी नक्सली भूपेश बघेल के संपर्क में थे । भूपेश बघेल के हिंदू विरोधी रूख के कारण हिंदुओं और कांग्रेस के छत्तीसगढ़ के नेता टी एस सिंह देव को मुख्यमंत्री न बनाए जाने के कारण उनके क्षेत्र के तमाम मतदाताओं ने , एकजुट होकर  कांग्रेस पार्टी को पराजित कर दिया ।

राजस्थान में तो सरकार बदलने की परंपरा ही रही है ।  पूरी उम्मीद थी कि कांग्रेस पराजित होगी और भाजपा विजयी होगी लेकिन फिर भी गहलोत और भाजपा नेता वसुंधरा राजे की जुगलबंदी कुछ संदेह पैदा कर रही थी कि राजस्थान में कुछ नया ना हो जाए । लेकिन ऐसा नहीं हुआ और उम्मीद के मुताबिक कांग्रेस बुरी तरह पराजित हो गई ।

तेलंगाना में भाजपा मुकाबले में ही नहीं थी । वहां मुकाबला कांग्रेस और केसीआर की पार्टी में था । इसलिए वहां कांग्रेस ने भाजपा को नहीं हराया बल्कि केसीआर को हराया । तेलंगाना में भाजपा को पिछली बार की अपेक्षा वोट प्रतिशत भी ज्यादा मिला और विधायक भी अधिक जीते हैं।

मिजोरम में ना कांग्रेस लड़ाई में थी ना बीजेपी ।  वहां क्षेत्रीय पार्टियों के बीच संघर्ष था ।

अब बड़ा प्रश्न है कि क्या कांग्रेस हाई कमान इस करारी पराजय का ईमानदारी से विश्लेषण करेगा ? कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और खांटी कांग्रेसी आचार्य प्रमोद कृष्णम ने साफ कहा है कि कांग्रेस की करारी हार सनातन के अभिशाप का परिणाम है । उनका कहना था कि कांग्रेस में कुछ नेताओं को हिंदू शब्द और हिंदू पहनावे से नफरत हो गई है । ऐसे लोग कांग्रेस का सर्वनाश करना चाहते हैं । कांग्रेस हाई कमान को इन ताकतों को पहचानना होगा ।  यह ताकत कोई और नहीं है बल्कि वह नक्सली हैं जिन्होंने राहुल गांधी , सोनिया गांधी और प्रियंका गांधी के चारों ओर घेरा बना लिया है ।

मैंने अपने पहले लेख में भी लिखा था कि यदि कांग्रेस इन चुनावों में पराजित होती है या मजबूत होकर नहीं उभरती तो इंडी एलायंस  में कांग्रेस की स्थिति कमजोर होगी और क्षेत्रीय पार्टियां अपनी आवाज को बुलंद करेंगी । 3 दिसंबर को जिस दिन चुनाव परिणाम आए उसी दिन से से यह नजारा साफ दिखाई देने लगा । एक तरफ हड़बड़ाहट में कांग्रेस के अध्यक्ष खड़गे ने इंडी एलायंस की बैठक बुलाते हुए उसके  नेताओं को डिनर पर आमंत्रित किया तो दूसरी ओर बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार , बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी , शिव सेना के उद्धव ठाकरे और उत्तर प्रदेश के समाजवादी पार्टी के प्रमुख अखिलेश यादव ने कांग्रेस को आंखें दिखा दी । आखिरकार कांग्रेस को लालू यादव की शरण में जाना पड़ा । कांग्रेस ने लालू यादव को इन नेताओं को समझाने और अगली बैठक में आने के लिए राजी करने का काम सौंपा।

इस स्तंभ लेखक का मानना है कि बैठक में तो इंडी एलायंस के सारे नेता  शामिल होंगे लेकिन अब कांग्रेस को क्षेत्रीय पार्टियों के नेताओं की बातों को सुनना पड़ेगा । उनकी शर्तों को मानना पड़ेगा । जिसका मतलब बहुत साफ है कि 2024 में कांग्रेस अपने भरोसे सरकार बनाने का सपना भी देखेगी तो सिर्फ मूर्खता होगी ।

इस स्तंभ लेखक का मानना है कि कांग्रेस को सबसे पहले अपने घर के अंदर सफाई करनी चाहिए । राहुल , प्रियंका और सोनिया के चारों ओर जमा जेएनयू के नक्सलियों को कांग्रेस पार्टी से निकाल कर बाहर कर देना चाहिए ।  पार्टी के पुराने नेताओं को साथ लाकर समय रहते कांग्रेस का पुनर्गठन करना चाहिए । तभी कांग्रेस 2024 से पहले कुछ खड़ा होने की स्थिति में होगी । अन्यथा जिस तरीके से  अब राहुल गांधी चारों खाने चित नजर आ रहे हैं  उसी तरह से 2024 के लोकसभा चुनाव परिणाम के बाद राहुल गांधी और कांग्रेस पार्टी चित नजर आयेंगे।

आज की चर्चा यही तक आगे फिर मुलाकात होगी पढ़ते रहिए charchakavishay.com ।

1 thought on “चित कांग्रेस क्या आत्ममंथन कर पायेगी?”

  1. it is impossible to review honestly about own defeat by congress . I think no other than Rahul Gandhi is responsible for defeat . He make derogatory remaks about Narendra Modi who is unexpctedly famous among people of India . ALL congressman should throw rahul priyanka and sonia from congress . Rovert Vadra is better than these notorious three

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