नीतीश के खेमे में गमीं क्यों???
नीतीश कुमार के खेमे में अचानक से गमीं का माहौल दिखाई दे रहा है । जद यू में गमीं का माहौल बेंगलुरु बैठक के बाद शुरू हुआ । आपको याद होगा पटना में विपक्षी दलों की बैठक नीतीश कुमार ने बड़े जोशो खरोश और उम्मीदों से बुलाई थी लेकिन लालू ममता और कांग्रेस ने बड़ी चालाकी से नीतीश कुमार की उम्मीदों पर पानी फेर दिया था । अगली बैठक बेंगलुरु में तय की गई । नीतीश कुमार को अभी भी आस थी कि शायद बेंगलुरु बैठक में उनकी महत्वाकांक्षा पूरी हो जाए और उन्हें विपक्ष की ओर से प्रधानमंत्री पद का दावेदार घोषित कर दिया जाए । लेकिन बेंगलुरु बैठक को पूरी तरह से कांग्रेस ने हाईजैक कर लिया । वहां किसी विपक्षी नेता की एक ना सुनी गई । जो राहुल गांधी ने कहा बस वो ही माना गया। गठबंधन के नाम से लेकर नए उम्मीदवार के चयन तक जो कांग्रेस ने कहा वही माना गया । तब नीतीश कुमार प्रेस कॉन्फ्रेंस का बहिष्कार करके सीधे बिहार चले आए थे । अब जैसे जैसे समय बीत रहा है नीतीश के खेमे में बेचैनी है ।
इसे नीतीश कुमार के सितारे कहें या इनका भाग्य कहें या उनकी ब्लैक मेलिंग करने की क्षमता कहें कि कभी भी स्पष्ट बहुमत ना होने के बावजूद वह कई बार बिहार के मुख्यमंत्री बने और हमेशा अपनी शर्तों पर शासन किया । दरअसल नीतीश कुमार कभी भाजपा को लालू यादव का खौफ दिखाकर ब्लैकमेल करते रहे तो कभी लालू यादव को भाजपा का खौफ दिखाकर ब्लैकमेल करते रहे ।
पिछले विधानसभा चुनाव में नीतीश कुमार की पार्टी को बहुत कम सीटें मिली लेकिन उसके बाद भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह ने उनको ही मुख्यमंत्री बनाने में दिलचस्पी दिखाई । लेकिन इस बार भाजपा शासन में अपनी हिस्सेदारी और सक्रियता को लेकर सतर्क थी और बस यही बात नीतीश कुमार को मंजूर नहीं थी ।
लालू यादव नीतीश कुमार की कमजोरियों को अच्छी तरह जानते है । लालू यादव केंद्रीय और राज्य सरकार की एजेंसियों द्वारा उनके परिवार पर कसे जा रहे शिकंजे से परेशान थे । उन्होंने नीतीश कुमार की कमजोरियों को ध्यान में रखकर एक बड़ा दांव खेला । उन्होंने नीतीश के सामने दो प्रस्ताव रखें । पहला अगले लोकसभा चुनाव तक आप ही मुख्यमंत्री रहो और दूसरा कि वह अगले लोकसभा चुनाव से पहले अन्य दलों से बात कर उनको विपक्ष की ओर से प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित करा देंगे । लालू यादव, नीतीश कुमार की प्रधानमंत्री पद की महत्वाकांक्षा को अच्छी तरह जानते थे । नीतीश कुमार लालू के जाल में फंस गए और खुद को भावी प्रधानमंत्री मान बैठे । रातो रात एक बार फिर पलटी मारी और भाजपा को छोड़ राष्ट्रीय जनता दल के साथ बिहार में सरकार का गठन कर लिया । पूरे बिहार में जनता दल यू की ओर से नीतीश कुमार को लेकर भावी प्रधानमंत्री के पोस्टर चिपकाए गए । जनता दल के प्रवक्ता तो इतने खुश थे मानो नीतीश कुमार प्रधानमंत्री बन गए हैं बस शपथ लेना बाकी है । लेकिन खेल अभी बाकी था । कुछ समय पश्चात पटना में विपक्षी दलों की बैठक हुई जिसमें बड़ी ना नूकर के बाद कांग्रेस ने भाग लिया । बैठक के बाद प्रेस कॉन्फ्रेंस में नीतीश कुमार की उपस्थिति में लालू यादव ने इशारों इशारों में राहुल गांधी से कहा आप दूल्हा बनो हम सब बाराती बनेंगे । इशारा साफ था कि प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार राहुल गांधी होंगे और हम सब उनके सारथी होंगे ।
अभी तक नीतीश कुमार को शायद यह मजाक लगा और वह बेंगलुरु बैठक का इंतजार करते रहे । लेकिन बेंगलुरु बैठक में नीतीश कुमार को किसी ने पूछा तक नहीं । कहा यह भी जाता है कि नीतीश कुमार को बैठक में अपनी बात कहने की भी पूरी छूट नहीं दी गई ।
अब शायद नीतीश कुमार जान चुके थे कि वह लालू यादव के खेल में फंस चुके हैं। नतीजा यह है उनके पूरे खेमे में गमीं का माहौल है । उनको समझ नहीं आ रहा कि करें तो करें क्या । दूसरी ओर बिहार एक बार फिर जंगलराज की राह पर चल पड़ा है । पूरे बिहार में हत्याओं और अपराधों का नया दौर शुरू हो गया है । कारण – प्रशासन में साफ संदेश है कि सरकार राजद के इशारे पर ही चलेगी । पिछले कई दिनों से नीतीश कुमार एक बार फिर अपने विधायकों और सांसदों से मिलकर उनका मन टोह रहे हैं और जानना चाहते हैं कि करें तो करें क्या ?
यदि मीडिया के कुछ अंदर के सूत्रों की मानें तो पिछले कुछ दिनों में ही नीतीश कुमार ने भाजपा से उच्च स्तर पर सात वार संपर्क साधने का प्रयास किया है । लेकिन फिलहाल भाजपा अडिग है कि नीतीश कुमार के लिए दरवाजे हमेशा के लिए बंद है । हालांकि भाजपा इस बात पर अडिग रहेगी अभी यह भी नहीं कहा जा सकता । क्योंकि भाजपा में भी नीतीश कुमार के काफी मित्र हैं । लेकिन एक बात बहुत स्पष्ट है कि यदि इस बार भाजपा ने नीतीश कुमार के लिए अपने दरवाजे खोल दिए तो नुकसान नीतीश कुमार से ज्यादा भाजपा को होगा । बिहार में नीतीश कुमार की छवि ध्वस्त हो चुकी है । अब उनकी छवि मात्र एक पलटी मार और राजनीतिक ब्लैकमेलर की है । वह भाजपा के लिए जरा भी फायदे का सौदा साबित नहीं होंगे । लेकिन हां यदि भाजपा और नीतीश फिर एक हो गए तो राष्ट्रीय जनता दल के लिए यह बहुत फायदे का सौदा होगा ।
चर्चा के इस स्तंभ में चर्चा के इस लेखक का मानना है कि उस परिस्थिति में बिहार में तेजस्वी यादव एक बड़े नेता बन कर उभरेंगे । नीतीश और भाजपा मिलकर भी राजद के तेजस्वी यादव को शायद ना हरा पाए । कारण जनता में यह मैसेज आएगा कि भाजपा हर बार नीतीश की गोदी में जाकर बैठ जाती है और नीतीश अपने फायदे के लिए कभी भाजपा तो कभी राजद की गोदी में जाकर बैठ जाते हैं इससे अच्छा है की राजद को ही स्थिर सरकार बनाने का मौका दिया जाए ।
देखना है राजनीति के एक बड़े मौसम वैज्ञानिक नीतीश कुमार क्या एक बार फिर पलटी मारेंगे या इस बार लालू यादव के जाल में फंसे रह जाएंगे । फिलहाल तो पूरा जनता दल यू गमी के माहौल में जी रहा है । उसे समझ नहीं आ रहा करें तो करें क्या ???
चर्चाओं के स्तंभो में चर्चाओं पर हम चर्चा करते रहेंगे और नई चर्चाओं से आपको अवगत कराते रहेंगे । फिलहाल तो प्रतीक्षा कीजिए नीतीश कुमार के अगले कदम की ।।