हैवानियत पर दल और समुदाय के आधार पर विभेद क्यों ?
विदेशी आक्रमणकारी शक्तियों के आने से पहले भारत के हजारों साल के इतिहास में कभी ऐसा नहीं देखा गया कि महिलाओं के साथ हैवानियत को शासन या सत्ता के तत्वों का समर्थन मिला हो । लेकिन विदेशी आक्रांताओं के आने के बाद भारतीय उपमहाद्वीप में यह सिलसिला शुरू हो गया ।
आजादी के बाद से भारत की सत्ता संभालने वाले लोगों ने भी महिलाओं पर बर्बरता को हल्के में लिया और बर्बरता में शामिल तत्वों को त्वरित और कठोर दण्ड की व्यवस्था नहीं की । हालांकि फिर भी उस दौर में लगभग सभी पार्टियों के नेताओं में इतना सामंजस्य था कि बर्बरता के खिलाफ वह एक स्वर बोलते थे।
1986 के दौर के बाद जब क्षेत्रीय पार्टियों का उदय हुआ , गुंडा शक्ति को राजनीतिक समर्थन मिलना शुरू हो गया । गुंडा तत्व जो पहले आमतौर पर नेताओं के पीछे हुआ करते थे वे स्वयं नेता बन गए । इसी के बाद राजनीति में हैवानियत और महिलाओं व बच्चों पर बर्बरता करने वालों को राजनीतिक समर्थन मिलना प्रारंभ हो गया ।
भारत में वामपंथी ताकतें शुरू से परिवार जैसी संस्था और संस्कारों के खिलाफ थी । वामपंथी संगठनों में व्याभिचारिता आम थी । वामपंथी ताकतों ने हैवानियत का कभी खुलकर विरोध नहीं किया । दुर्भाग्य से कांग्रेस में वामपंथी तत्वों ने गहरी घुसपैठ कर ली थी । जिस कारण लंबे समय तक सत्ता में रही कांग्रेस ने कभी इस बात का प्रयास नहीं किया की ऐसी ताकतों के खिलाफ कठोर और त्वरित दंड की व्यवस्था की जाए ।
हाल के दिनों में दिल्ली में निर्भया कांड की बहुत गूंज रही। लेकिन वहां भी दिल्ली के अरवन नक्सली तत्वों ने निर्भया कांड के सबसे बड़े अपराधी को उसके नाबालिग होने के आधार पर चालाकी से बचा लिया । कहा तो यहां तक जाता है कि इन अरवन नक्सली ताकतों ने उसके नाबालिग होने के तथाकथित तौर पर फर्जी कागज तैयार कराये ।
पश्चिम बंगाल में लंबे समय तक कम्युनिस्ट पार्टियों का शासन रहा । उस समय मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी पर ज्योति बसु और हरकिशन सिंह सुरजीत जैसे सुलझे हुए नेताओं का वर्चस्व था । यही नहीं भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी पर भी इंद्रजीत गुप्त जैसे सुलझे हुए नेताओं का वर्चस्व था । जैसे-जैसे इन नेताओं की पकड़ कमजोर हुई पश्चिम बंगाल हिंसा के दौर में प्रवेश कर गया । उस समय गैर वाम पंथी नेता के रूप में ममता बनर्जी स्थापित हुई । ममता बनर्जी ने वामपंथी ताकतों को उखाड़ फेंका । तब एक बार यह उम्मीद जगी थी पश्चिम बंगाल हिंसा से मुक्त हो जाएगा । लेकिन यह उम्मीद क्षणिक साबित हुई और पश्चिम बंगाल में हिंसा और हैवानियत का एक नया दौर शुरू हो गया । पश्चिम बंगाल में जो भी चुनाव हुए वह चाहे विधानसभा के हों या लोकसभा के हों या पंचायत स्तर के हों , व्यापक स्तर पर गुंडागर्दी हुई । लोकतंत्र को कुचला गया और महिलाओं के साथ ऐसी हैवानियत की गई जिसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती थी । इस हैवानियत की शिकार लगभग सभी गैर टीएमसी महिला कार्यकर्ता हुईं । फिर वह चाहे कांग्रेस की थीं या वामी थीं या भाजपा की थीं । इस हिंसा और हैवानियत पर यदि सभी राजनीतिक ताकतों का स्वर एक होता तो समाज में अच्छा संदेश जाता और ममता बनर्जी भी दबाव में आकर असामाजिक तत्वों पर कार्यवाही करने को मजबूर होती । लेकिन राजनीतिक ताकतों ने अपने अपने स्वार्थ के हिसाब से इस हिंसा और हैवानियत पर अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त की ।
मई माह में मणिपुर हाई कोर्ट के एक निर्णय के बाद मणिपुर में व्यापक स्तर पर हिंसा शुरू हुई । मणिपुर में कुकी और नागा समुदाय व्यापक स्तर पर अफीम की अवैध खेती करते हैं । यह अपेक्षाकृत धनी हैं और इनके परिवार आधुनिक स्वचालित हथियारों से लैस होते हैं । स्थिति यह है कि पुलिस और सेना को भी इन तत्वों को नियंत्रित करना आसान नहीं है । मणिपुर के शांति पूर्ण मैतेयी समुदाय को व्यापक तौर पर हिंसा का निशाना बनाया । मैतेयी समुदाय के घरों को जला दिया गया और उनकी महिलाओं के साथ वह दरिंदगी हुई जिसका वर्णन भी नहीं किया जा सकता । पुरुषों महिलाओं और बच्चों को जिंदा जला दिया गया । मैतेयी समुदाय अधिकांश रूप से हिंदू है शायद इसलिए इस व्यापक हिंसा पर भारत के सभी गैर भाजपा दल स्वार्थवश खामोश रहे ।इसी बीच मणिपुर में 2 महिलाओं के साथ हैवानियत का एक पुराना वीडियो सामने आया । बताया जा रहा है कि यह महिलाएं मैतेयी समुदाय की नहीं हैं । बस भारत के सभी गैर भाजपा दलों ने इसे बहुत बड़ा मुद्दा बना दिया । यही नहीं उच्चतम न्यायालय ने भी इस घटना का संज्ञान ले लिया । उच्चतम न्यायालय के इस कदम पर सोशल मीडिया पर बड़ी संख्या में लोगों ने नाराजगी भरी प्रतिक्रिया भी दी।
प्रश्न यह नहीं है कि इस घटना का संज्ञान क्यों लिया गया या गैर भाजपा दलों ने इस घटना को मुद्दा क्यों बनाया ? प्रश्न यह है कि हम हैवानियत और दरिंदगी को राजनीतिक और सामुदायिक चश्मे से क्यों देख रहे हैं ? हैवानियत और दरिंदगी को बस हैवानियत और दरिंदगी ही समझा जाए , फिर वह चाहे किसी भी समुदाय की महिलाओं के साथ हो या किसी भी दल की महिलाओं के साथ हो । राजनीतिक तत्वों को उस पर एक स्वर में बोलना चाहिए । तभी ऐसी हरकतों को रोका जा सकता है । हाल के दिनों में राजस्थान , छत्तीसगढ़ और बिहार के भी शर्मनाक वीडियो वायरल हुए हैं लेकिन अफसोस कि गैर भाजपा दलों ने उन पर शर्मनाक चुप्पी साध ली।
इस स्तंभ में चर्चा करने का यही आशय है कि देश की सभी राजनीतिक ताकतों में कम से कम इतना सामंजस्य तो हो कि दरिंदगी कहीं भी हो और किसी के भी साथ हो उनका स्वर एक जैसा होना चाहिए । इसमें दल या समुदाय के आधार पर यदि विभेद किया जाएगा तो देश में ऐसी हैवानियत और दरिंदगी वाली ताकतों को कुचला नहीं जा सकता । अच्छा हो सभी दल ईमानदारी से बैठें और यह तय करें कि घटना कहीं भी हो और किसी के भी साथ हो, सभी पर सबका स्वर एक होना चाहिए।