क्या भ्रष्टाचार के दाग धुल जायेंगे
नाम इंडिया रखने से ?

2024 में विपक्षी एकता की तैयारियों के मद्देनजर पटना के बाद प्रतीक्षित बेंगलुरु बैठक अंततः संपन्न हो गई । कुल मिलाकर 26 दल इस बैठक में  शामिल हुए । नए गठबंधन का नाम इंडिया रखना तय किया गया । अंदरूनी सूत्र बताते हैं कि इस नाम पर नेताओं के मध्य मतभेद थे । बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार सहित कई नेता इस नाम से सहमत नहीं थे । लेकिन राहुल गांधी की जिद के आगे सबको नतमस्तक होना पड़ा । बेंगलुरु बैठक से एक संदेश तो साफ गया कि विपक्षी एकता की कमान के एजेंडे को कांग्रेस ने हाईजैक कर लिया है  ।पटना बैठक में जब नीतीश कुमार को संयोजक नहीं बनाया गया , तब उन्हें उम्मीद थी कि शायद बेंगलुरु बैठक में उनके नाम को सहमति मिल जाएगी । लेकिन कांग्रेस ने बड़ी चालाकी से बेंगलुरु बैठक में संयोजक के नाम के मसले को अगली बैठक के लिए टाल दिया । बताया जाता है नीतीश कुमार इस बात से काफी नाराज हुए और इस बार उन्होंने गठबंधन की प्रेस वार्ता का बहिष्कार कर दिया । उन्होंने ना केवल बहिष्कार किया अपितु राजद नेता लालू प्रसाद यादव और तेजस्वी यादव को भी प्रेस वार्ता में शामिल नहीं होने दिया और सीधे पटना के लिए प्रस्थान कर गए ।
बंगलुरू बैठक में तय  गठबंधन का नाम  इंडिया को लेकर राहुल गांधी और कांग्रेस बहुत उत्साहित हैं । उनका मानना है कि नाम के कारण ही भाजपा नीत गठबंधन उनके गठबंधन पर हमला नहीं कर सकता । हालांकि यहां एक बड़ा सवाल यह भी है कि क्या बस गठबंधन का नाम इंडिया रखने से देश लालू परिवार , गांधी परिवार  और अरविंद केजरीवाल सहित  विपक्ष के तमाम नेताओं पर लगे  घोटालों के आरोपों  को भूल जायेगा।
बैंगलोर बैठक में सीटों के बंटवारे को लेकर कोई चर्चा नहीं हुई । नाम  तय होने के बाद बस यह तय हुआ कि अगली बैठक मुंबई में होगी जिसमें एक संचालन समिति और संयोजक का नाम तय किया जाएगा । कांग्रेस ने बड़ी चालाकी के साथ गठबंधन के नेता के नाम को एक बार फिर टाल दिया । मतलब बहुत साफ है कि  कांग्रेस गठबंधन के नेता का नाम और सीटों के बंटवारे  को टाल कर अन्य विपक्षी दलों को भ्रम में रखना चाहती है । अभी इस बारे में कुछ नहीं कह सकते  कि क्या अखिलेश यादव , नीतीश कुमार , ममता बनर्जी ,  स्टालिन , हेमंत सोरेन और केजरीवाल अपने-अपने इलाकों में कांग्रेस के लिए मैदान छोड़ेंगे ।  क्या कांग्रेस मध्य प्रदेश और राजस्थान जैसे राज्यों में गठबंधन के साथियों को सीटें देगी । महाराष्ट्र की स्थिति भी कम पेचीदा नहीं है। ठाकरे गुट ,  शरद पवार  और कांग्रेस के मध्य बंटवारे का आधार क्या होगा  । उल्लेखनीय है कि ठाकरे और पवार के हाथों से उनकी  पार्टी छिन चुकी है । जब तक इन मूल बातों का समाधान नहीं होगा गठबंधन का कोई मतलब नहीं है । सिर्फ नाम से कोई गठबंधन चुनाव नहीं जीत सकता । दरअसल देश में नेताओं की ऐसी काफी बड़ी जमात है जो जनता को बेवकूफ समझती है। ऐसे ही लोगों की यह सोच है की यूपीए पर भ्रष्टाचार के बहुत दाग है इसलिए बस नाम बदल दो और नया नाम इंडिया रखने भर से देश इनके कारनामों को भूल जाएगा।
इस स्तंभ लेखक का मानना है कि यह शुरुआती उत्साह है और कांग्रेस,  लालू  , ममता बनर्जी , अखिलेश यादव हेमंत सोरेन, केजरीवाल और ठाकरे गुट को  जनता के सामने अपने अपने कार्य कालों का हिसाब देना होगा । यदि जनता को उनकी सफाई पर विश्वास होगा तभी इंडिया गठबंधन को जनता का समर्थन मिलेगा । सच यह  है कि आज भी राहुल गांधी जनता के मध्य एक गंभीर नेता की इमेज बना पाने में असफल रहे हैं । नीतीश कुमार के ऊपर भले ही भ्रष्टाचार के सीधे आरोप ना हो लेकिन लगातार पलटी मारने और राजद जैसे दलों के साथ गठबंधन का उनका तरीका जनता के बीच इम्तिहान का विषय होगा । नीतीश कुमार ने जब से राजद के साथ मिलकर सरकार बनाई है उसके बाद बिहार में जितने भी उप चुनाव हुए हैं उनसे साफ जाहिर है कि जनता में जनता दल यू की छवि गिरी है और उसके वोट बैंक में बड़ी गिरावट आई है । इसी तरह से बंगाल में जिस तरह से पंचायत चुनाव में हिंसा का नंगा नाच हुआ है और लोकतंत्र को कुचला गया है , ममता बनर्जी को लोकसभा चुनाव में उसका जवाब देना होगा । अखिलेश यादव उत्तर प्रदेश में भाजपा के लिए कितनी  बड़ी चुनौती साबित होंगे यह देखना होगा । उनके पास सजातीय वोटों के अलावा दूसरा वोट बैंक मुस्लिम समुदाय का है । लेकिन मुस्लिम समुदाय का एक इतिहास भी रहा है । यदि उसे किसी अन्य भाजपा विरोधी दल का मुस्लिम प्रत्याशी जीतता हुआ लगता है तो वह उसकी  ओर मुड़ जाता है ।  उत्तर प्रदेश में अभी जयंत चौधरी ने अपने पत्ते नहीं खोले हैं यदि जयंत चौधरी सपा के साथ जाते हैं तो लोकदल को फायदा हो या ना हो लेकिन सपा को निश्चित रूप से फायदा होगा । बसपा ने साफ कर दिया है कि वह उत्तर प्रदेश में अकेले चुनाव लड़ेगी । यदि मुस्लिम समुदाय ने बसपा वोट बैंक के साथ जाने का फैसला कर लिया तो लोक दल और सपा को बड़ा नुकसान भी हो सकता है। बसपा की स्थिति इस बात पर निर्भर करेगी कि मुस्लिम समुदाय क्या फैसला करता है।
गठबंधन के नए नाम को लेकर कांग्रेस में तो बहुत उत्साह है लेकिन शायद सपा , जदयू , राजद और टीएमसी जैसे अन्य दल इसको लेकर सावधान हैं क्योंकि आशंका है कि कांग्रेस गठबंधन के नाम की आड़ में इन संगठनों के वजूद को मिटाने का षड्यंत्र कर सकती है।
अभी चुनौती बहुत हैं  देखना होगा गठबंधन अपने आपसी मतभेदों और सीटों के बंटवारे को किस तरह से सुलझाता है  लड़ाई का स्वरूप तभी तय होगा । अभी तो भाजपा का पलड़ा भारी लगता है । वैसे भी कांग्रेस नीत गठबंधन में 26 दलों के मुकाबले एनडीए के पास 38 दलों का कुनवा है। भाजपा लगातार कुछ अन्य दलों को अपने साथ जोड़ने को लेकर सक्रिय है। खास बात यह है की एनडीए में जो दल शामिल हैं , उनके जनाधारों के क्षेत्रों को देखकर  ऐसा नहीं लगता कि वहां सीटों को लेकर कोई लड़ाई होगी । जबकि नेतृत्व को लेकर तो किसी प्रकार के मतभेद का सवाल ही पैदा नहीं होता । जबकि नये गठबंधन इंडिया में संयोजक पद के नाम को लेकर आपसी कलह की आशंका से इंकार नहीं  और बड़ा सवाल कौन रोक पायेगा उस आपसी कलह को ???
फिलहाल तो चर्चाओं का दौर जारी है। चर्चाएं चलती रहेंगी  ।और हम भी आपको चर्चाओं से अवगत कराते रहेंगे ।
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