ममता बनर्जी का हिंसक लोकतंत्र
पश्चिम बंगाल के पंचायत चुनाव अंततः संपन्न हो गए और परिणाम भी आ गए । पूरे देश ने बंगाल के इन चुनावों में हिंसा का नंगा नाच अपनी आंखों से देखा । समझ में यह नहीं आ रहा कि इसको हिंसा कहा जाए या ममता बनर्जी का लोकतंत्र कहा जाए।
यह आशंका पहले से थी कि बंगाल के चुनाव में व्यापक स्तर पर हिंसा होगी । इतिहास भी इसका गवाह है । केंद्र सरकार ने अतिरिक्त सुरक्षा बल बंगाल में भेज दिए थे । लेकिन ममता बनर्जी का तो इरादा ही कुछ और था । मानो उन्हें बंगाल की जनता पर विश्वास ही नहीं है । और इसीलिए वह हिंसा के माध्यम से चुनाव जीतने के लिए आमादा थी । केंद्रीय सुरक्षा वालों ने स्पष्ट कहा है कि उनको ना तो संवेदनशील बूथों की जानकारी दी गई और ना ही उनको उन बूथों पर भेजा गया । पश्चिम बंगाल के राज्यपाल खुद सड़कों पर उतरे और लोगों से हिंसा न करने की अपील की । लेकिन जब सत्ताधारी दल और सरकार हिंसा पर उतारू हो तो यह सब कुछ बेमानी हो जाता है
पूरे देश ने अपनी आंखों से देखा कि किस तरह से बूथों पर मतपत्र लूटे गए । यही नहीं अनेक स्थानों पर सत्ताधारी दल के लोग मतपेटिकाऐं उठाकर भाग गए । और पुलिस मूक दर्शक बनी रही । ममता बनर्जी की सरकार ने कहीं पर भी कोई सकारात्मक कदम नहीं उठाया ।
सबसे बड़ी बात यह है जो कांग्रेस और वामपंथी , बंगाल में ममता बनर्जी से लड़ रहे हैं , उनकी भी स्टेट यूनिट तो हिंसा के खिलाफ बयान दे रही है लेकिन केंद्रीय स्तर पर इन पार्टियों के हाईकमान ने चुप्पी साध रखी है । शायद उन्हें उम्मीद है 2024 के चुनाव में उनको ममता बनर्जी की जरूरत पड़े । देश के लगभग संपूर्ण विपक्ष ने असाधारण रूप से चुप्पी साध रखी है । देश इस हिंसा को और विपक्षियों की चुप्पी को अपनी आंखों से देख रहा है । शायद विपक्ष इसीलिए लोकसभा का चुनाव बैलेट पेपर से चाहता है ताकि देशभर में वह गुंडागर्दी करके , हिंसा करके बूथों पर कब्जा कर सकें और मतपत्रों को लूट कर चुनावों में जीत हासिल कर सकें बंगाल की हिंसा यह संकेत दे रही है की अब आवश्यकता है कि पंचायत और स्थानीय निकाय के चुनाव भी ईवीएम के द्वारा कराए जाएं जिससे बूथों पर कब्जा और मतपत्रों की लूट रोकी जा सके
बंगाल की हिंसा ममता बनर्जी का डर भी दिखाती है । वह एक तरफ देशभर में घूम कर खुद को मोदी के विकल्प के रूप में पेश कर रही है तो दूसरी ओर बंगाल के चुनाव को जीतने के लिए उन्हें व्यापक स्तर पर हिंसा का सहारा लेना पड़ रहा है । मतलब बहुत साफ है 2024 के लोकसभा चुनाव में बंगाल में ममता बनर्जी को विरोधियों से कड़ी टक्कर का अंदाजा है
देश भर की जनता तमाम विपक्षी पार्टियों से बंगाल की हिंसा पर चुप्पी का जवाब भी मांगेगी और पूछेगी कि क्या यही बंगाल का लोकतंत्र है जिसको आप लोग देशभर में लागू करना चाहते हो । हिंसा के माध्यम से ममता बनर्जी ने भले ही स्थानीय चुनाव में बढ़त हासिल कर ली हो लेकिन ना केवल ममता बनर्जी बल्कि देश के संपूर्ण विपक्ष को इस हिंसा पर चुप्पी का व्यापक नुकसान होगा । जनता का भरोसा भाजपा और मोदी पर ज्यादा होगा। क्योंकि भाजपा ने किसी भी राज्य में इस तरीके की हिंसा के माध्यम से ना चुनाव कराए हैं ना चुनाव जीते हैं । अभी उत्तर प्रदेश के स्थानीय निकाय चुनाव संपन्न हुए लेकिन पूरे प्रदेश में कहीं पर भी हिंसा की वारदात नहीं हुई । यह भाजपा और ममता बनर्जी के लोकतंत्र का अंतर है ।