यूसीसी पर घमासान

समान नागरिक संहिता मतलब यूसीसी को लेकर माहौल देशभर में गर्म होता जा रहा है । पक्ष और विपक्ष में तर्क गढ़े जाने शुरू हो गए हैं । भाजपा आगामी सत्र में समान नागरिक संहिता का मसौदा लाने को तैयार लग रही है । कहा जा रहा है कि मसौदे का ड्राफ्ट तैयार है। विपक्षी नेताओं में आपसी खींचतान है। कुछ दल ड्राफ्ट का मसौदा देखने के बाद प्रतिक्रिया देना चाहते हैं तो कुछ दल बिना कुछ देखे ही समान नागरिक संहिता का विरोध करने पर उतारू है । दरअसल पिछले विधि आयोग ने कहा था कि हालांकि समान नागरिक संहिता आवश्यक है लेकिन फिर भी अभी तत्काल इसकी जरूरत नहीं है । कांग्रेस उसी की आड़ लेकर यह बात कह रही है कि पिछले विधि आयोग ने समान नागरिक संहिता की तत्कालिक आवश्यकता को नकार दिया था । इसलिए इसकी जरूरत नहीं है । दूसरी ओर वर्तमान विधि आयोग का मानना है कि अब वह समय आ गया है जब देश में समान नागरिक संहिता लागू की जाए । विधि आयोग ने एक प्रेस नोट जारी करके देशभर के बुद्धिजीवियों से समान नागरिक संहिता के लिए सुझाव मांगे हैं । कांग्रेस के अंदर समान नागरिक संहिता को लेकर मतभेद नजर आ रहे हैं । एक वर्ग का मानना है कि कांग्रेस को शाहबानो केस जैसी गलती पुनः नहीं करनी चाहिए और उसको मुस्लिम कट्टरपंथियों के दबाव के आगे नहीं झुकना चाहिए । बल्कि आगे बढ़कर समान नागरिक संहिता का समर्थन करना चाहिए । जबकि कांग्रेस का एक बड़ा वर्ग मानता है कि मुस्लिम वोटों के मद्देनजर कांग्रेस को किसी भी कीमत पर समान नागरिक संहिता का विरोध करना चाहिए । यह वर्ग समाज सुधार जैसी भावना पर विश्वास नहीं करता । कांग्रेस में कुछ लोगों का यह भी मानना है कि केंद्र सरकार यूसीसी के लिए गंभीर नहीं है । बल्कि 2024 के चुनाव के लिए या तो एक शगूफा है या वोट पोलराइजेशन का प्रयास है। कांग्रेस ने इसी तरीके के तर्क अयोध्या विवाद में भी दिए थे । इसी आधार पर 50 साल तक हिंदुओं के आराध्य भगवान राम के जन्मस्थान के मसले को अदालतों में लटकाए रखा । कॉन्ग्रेस का एक बड़ा वर्ग एक बार फिर चुनावी गणित को ध्यान में रखकर समान नागरिक संहिता का विरोध करना चाहता है । प्रश्न यह है कि जब कांग्रेस पार्टी पिछले विधि आयोग को मानती है तो वर्तमान विधि आयोग की सिफारिश को स्वीकार क्यों नहीं करती । पिछले विधि आयोग ने समान नागरिक संहिता की जरूरत पर जोर नहीं दिया तो सरकार संहिता का मसौदा लेकर नहीं आई । वर्तमान विधि आयोग संहिता पर जोर दे रहा है तो सरकार समान नागरिक संहिता का मसौदा लेकर आ रही है । कांग्रेस को दुविधा से निकलना होगा । इस स्तंभ लेखक की भी यही राय है कि कांग्रेस को समाज के व्यापक हित में शाह बानो केस जैसी गलती को नहीं दोहराना चाहिए । साथ ही कांग्रेस को यह ध्यान रखना चाहिए कि जो संविधान कांग्रेस के शासनकाल में बना , उसके अनुच्छेद ४४ में साफ कहा गया है कि देश में समान नागरिक संहिता लागू की जानी चाहिए । फिर कांग्रेस किस मुंह से यूसीसी का विरोध करेगी । कांग्रेस को तो समान नागरिक संहिता का ध्यान पूर्वक अध्ययन करना चाहिए । हां यदि उसकी निगाह में उसमें कुछ कमियां है तो उसे सरकार को सुझाव देना चाहिए । भारत की छोटी छोटी राजनीतिक पार्टियां भी यूसीसी को लेकर भ्रमित है । नार्थ ईस्ट के छोटे दलों में भी आशंकाएं हैं । अच्छी बात यह है की सरकार ने स्पष्ट कर दिया है कि उसका इरादा समान नागरिक संहिता पर अपनी राय थोपने का नहीं है । बल्कि वह देश के सभी हिस्सों के सामाजिक प्रचलनों को ध्यान में रखकर और सभी दलों की राय लेकर इस पर आगे बढ़ना चाहती है । हां यह बात सच है की सरकार आगे बढ़ने को दृढ़ है । प्रधानमंत्री ने पिछले दिनों भोपाल में यह कहकर साफ संकेत दे दिया था की एक घर में दो कानून नहीं चलेंगे ।
अभी तक जो संभावना है उसके अनुसार सरकार समान नागरिक संहिता के मसौदे में शादी की उम्र , विवाह का रजिस्ट्रेशन , बहुविवाह प्रथा , हलाला और ईद्दत , तलाक , सास ससुर की देखभाल , गोद लेने का अधिकार , भरण पोषण , बच्चों की देखरेख , उत्तराधिकार कानून , जनसंख्या नियंत्रण और लिव इन रिलेशनशिप जैसे मुद्दों को लेकर गंभीर है । और व्यापक स्तर पर सभी की राय लेकर इन विषयों पर ऐसा कानून बनाने का इरादा रखती है जो देश के प्रत्येक नागरिक पर लागू हो । फिर वह नागरिक किसी भी प्रथा को मानता हो या किसी भी धर्म को मानता हो ।
कोई दल अपने राजनीतिक हितों को ध्यान में रखकर कुछ भी फैसला करें लेकिन सच यह है समान नागरिक संहिता की देश को सख्त आवश्यकता है । अच्छा हो सभी दल और समूह अपने निजी स्वार्थ को एक तरफ रख कर देश हित में विचार करें और फैसला करें ।

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