नेता कौन ??? अब तो बता दो

सात चरणों में होने वाले लोकसभा चुनाव के संपूर्ण कार्यक्रम की घोषणा कर दी गई है । चुनाव परिणाम 4 जून को आएंगे ।

कांग्रेस की देशभर की यात्रा भी समाप्त हो गई है । यात्रा के समापन के बाद मुंबई में समापन रैली भी हो गई है । देश की अनेक पार्टियों ने अपने-अपने लोकसभा प्रत्याशियों के नामों की घोषणा करनी भी शुरू कर दी है । भाजपा ढाई सौ से अधिक नाम घोषित कर चुकी है । सपा , लोकदल , बसपा , टीएमसी जैसे दल भी अपने-अपने प्रत्याशियों की घोषणा कर रहे हैं । लेकिन विपक्ष की ओर से एक घोषणा अभी भी नहीं हो पा रही है ।

वह यह कि आखिर नरेंद्र मोदी का मुकाबला किस नेता से होगा ? कौन सा वह नेता है जो नरेंद्र मोदी को वोटरों के मध्य जाकर चुनौती देगा ? अपना चुनावी एजेंडा जनता के सामने रखेगा । नरेंद्र मोदी की कमियों को जनता के बीच गिनायेगा ।  अपने या विपक्ष के राजनीतिक एजेंडे को जनता के सामने रखेगा । ऐसा कोई चेहरा विपक्ष अभी तक घोषित नहीं कर पाया है ।

आखिर  कब तक घोषित करेगा ? यहां प्रश्न यह भी है कि घोषित करेगा भी या नहीं ? प्रश्न यह भी है कि विपक्ष के पास ऐसा कोई नेता है भी या नहीं ? जब इंडी एलायंस बना था , तब लगा था कि भाजपा के लिए एक चुनौती तो होगी । नीतीश कुमार और ममता बनर्जी जैसे लोगों ने काफी प्रयास किया कि विपक्ष एक नेता की घोषणा कर दे । लेकिन कांग्रेस सबको बहलाती फुसलाती रही । कांग्रेस किसी भी कीमत पर यह नहीं चाहती कि भाजपा के विकल्प के रूप में गांधी परिवार के किसी सदस्य के अलावा किसी भी पार्टी के किसी भी नेता का नाम सामने लाया जाए  । सोनिया गांधी किसी भी कीमत पर राहुल गांधी को स्थापित करना चाहती हैं।  राहुल गांधी जिस तरह से बदतमीजी की भाषा बोलते हैं , झूठे आंकड़े देते हैं , झूठे आरोप लगाते हैं , अदालत में कई बार माफी मांग चुके हैं , उसे उनकी आज भी जनता के बीच इमेज एक पप्पू की है  ।  सोनिया गांधी इस सच्चाई को स्वीकार करने को तैयार नहीं है । कहा तो यहां तक जाता है कि कांग्रेस राहुल गांधी की इमेज बिल्डिंग पर 2000 करोड़ से अधिक खर्च कर चुकी है । लेकिन सब व्यर्थ और सुना कि देश विदेश की तमाम एजेंसियों ने हाथ खड़े कर दिए हैं। अच्छा होता कि कांग्रेस खासकर सोनिया गांधी इस सच्चाई को स्वीकार करतीं और यदि किसी अन्य दल से नहीं तो कांग्रेस से ही किसी अन्य नेता को चुनौती देने के लिए सामने लाती ।  आचार संहिता लग चुकी है । 19 अप्रैल से पहले चरण की वोटिंग भी शुरू हो जाएगी । मतलब बड़ा साफ है की मैदान में मोदी को चुनौती देने के लिए विपक्ष का कोई भी नेता मैदान में नहीं होगा । सच यह है कि यदि इंडी एलायंस ने शुरू में ही या कुछ देर से ही सही नीतीश कुमार , ममता बनर्जी या शरद पवार जैसे नेता को अपना नेता चुन लिया होता तो चुनाव परिणाम भले ही कुछ होता लेकिन भाजपा के सामने एक चुनौती होती । भाजपा को जूझना पड़ता लेकिन आज हालात बिलकुल अलग है । इंडी एलाइंस  हवा में उड़ चुका है ।  मजबूत क्षेत्रीय विपक्षी पार्टियां कांग्रेस के साथ खड़ी नहीं होना चाहतीं । नीतीश कुमार ने जब देखा कि कांग्रेस सबको धोखा दे रही है तो अंततः जैसी उम्मीद थी उन्होंने एक बार फिर पाला बदला और भाजपा के साथ जाकर खड़े हो गए । बंगाल की लोकप्रिय नेता ममता बनर्जी अकेले चुनाव लड़ने की घोषणा कर चुकी हैं । उन्होंने पश्चिम बंगाल में अपने सभी प्रत्याशियों की घोषणा कर दी है। देश में सबसे अधिक सीट रखने वाले राज्य उत्तर प्रदेश की प्रमुख विपक्षी पार्टी सपा ने यूं तो कांग्रेस को उसकी हैसियत से ज्यादा सीट दे दी हैं लेकिन वह भी कांग्रेस के साथ खड़े नहीं दिखना चाहती और इसीलिए कांग्रेस की मुंबई में हुई समापन रैली में सपा प्रमुख अखिलेश यादव शामिल नहीं हुए । देश के दलितों की सबसे बड़ी पार्टी बहुजन समाज पार्टी कांग्रेस से बहुत दूर का रिश्ता रखती है । कुल मिलाकर तमिलनाडु की डीएम के और बिहार का राजद ऐसी पार्टियां हैं जो कांग्रेस के साथ खड़ी हुई दिखती है  । 

डीएमके अपनी हिंदू विरोधी छवि के लिए फिलहाल चर्चा में है । डीएमके के नेता हिंदुत्व के खिलाफ उग्र बयान बाजी कर रहे हैं । यह वैसे ही कांग्रेस के लिए घातक है । दूसरी ओर बिहार में लालू परिवार का जंगल राज वाला शासन बिहार ही नहीं पूरे देश को आज भी याद है । स्वाभाविक है कि कांग्रेस के साथ लालू परिवार का खड़ा रहना कांग्रेस के लिए भी घातक ही है । लेकिन कांग्रेस का थिंक टैंक इस सच्चाई को स्वीकार करने को तैयार नहीं है । यह लोकतंत्र के लिए एक अच्छी स्थिति नहीं है कि सत्ता पक्ष के सामने चुनौती देने वाला कोई नेता ही ना हो । ऐसा लगता है कि नरेंद्र मोदी के लिए 2024 का चुनाव बहुत आसान है । कांग्रेस की समापन रैली के बाद राहुल गांधी द्धारा इलैक्ट्रोनिक वोटिंग मैनिपुलेशन को लेकर दिया गया बयान भी यह बताता है कि विपक्ष हार मान चुका लगता है। विपक्ष को यह ध्यान रखना चाहिए की 2029 का चुनाव और भी मुश्किल होगा क्योंकि जो हालात है उसके हिसाब से तब तक काशी और मथुरा के मंदिरों का मसला निपट चुका होगा और बहुत संभावना है कि भगवान श्री कृष्ण  और भोलेनाथ को अपने-अपने स्थान वापस मिल जाए । दूसरी और नरेंद्र मोदी का इरादा यह लगता है कि वह 2029 में एक देश एक चुनाव की और निश्चित रूप से कदम बढ़ा देंगे । यदि उन्होंने यह कदम बढ़ा दिया तब भारत पर यह नरेंद्र मोदी का बहुत बड़ा उपकार होगा । देश हर समय चुनाव से परेशान हो चुका है और एक देश एक चुनाव आज देश की जरूरत है । यदि नरेंद्र मोदी इस उपकार को करने में सफल हो गए तो 2029 में तो विपक्ष का और भी बुरा हाल होगा ।

फिलहाल आज की चर्चा यही तक ।  इंतजार करिये  कि शायद विपक्ष को सद्बुद्धि आ जाए और वह पहले ना सही चौथे या पांचवा चरण होने तक किसी एक व्यक्ति को नरेंद्र मोदी के सामने चुनौती देने के लिए पेश कर सके । जिसका परिणाम भले ही कुछ भी हो लेकिन कम से कम एक विपक्षी नेता का नाम तो देश के सामने आए । चर्चा के अगले अंक में फिर मिलेंगे जब तक और जो भी चर्चाएं होंगी उन चर्चाओं को लेकर आपके सम्मुख आऊंगा । 

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