आखिर विपक्ष कब जागेगा ?
2024 का लोकसभा चुनाव सिर पर है । किसी भी समय चुनाव की घोषणा हो सकती है । यह भी संभव है कि जब आप यह लेख पढ़ रहे हो तब तक चुनाव की तारीख की घोषणा हो जाए । भाजपा युद्ध स्तर पर चुनाव की तैयारी शुरू कर चुकी है । 195 सीटों सीटों पर उसने अपने उम्मीदवारों के नामों की घोषणा कर दी है । यह बीजेपी का आत्मविश्वास है ।
लेकिन विपक्ष , ऐसा लगता है अभी गहरी नींद में है या विपक्ष को 2024 का लोकसभा चुनाव परिणाम मालूम है कि आएगा तो मोदी ही , इसलिए उसे चुनाव परिणामों की चिंता ही नहीं है। जब इंडिया एलाइंस बना था तब लगता था कि विपक्ष भाजपा को चुनौती देने के मूड में है । लेकिन भाजपा ने उस एलायंस की हवा निकाल दी । कांग्रेस विपक्ष को एकजुट रखने में नाकाम रही है । राहुल गांधी हर चंद दिनों के बाद आराम के नाम पर या किसी तथाकथित इवेंट के नाम पर विदेश चले जाते हैं । उनकी यात्रा रहस्यभरी होती है । किसी को नहीं मालूम की इतनी जल्दी-जल्दी उन्हें विदेश जाने की आवश्यकता क्यों है ? आखिर किस से मिलने के लिए वह विदेश जाते हैं ? यह तो निश्चित है कि राहुल गांधी को कोई अपने कार्यक्रमों में नहीं बुलाता । ना वह इतने बड़े चिंतक हैं ना वह इतने बड़े राजनीतिक विचारक हैं कि उन्हें दुनिया के विभिन्न देशों में विभिन्न मंचों पर अपनी बात रखने के लिए बुलाया जाए । सच यह है कि आज तक जितने भी मंचों पर वह अपनी बात रखने गए हैं , वह मंच उनकी अपनी पार्टी के द्वारा प्रायोजित थे ना कि किसी अंतरराष्ट्रीय संगठन के द्वारा । कांग्रेस को देश को यह जरूर बताना चाहिए कि राहुल गांधी इतनी जल्दी जल्दी विदेश क्यों जाते हैं ? तरह-तरह की धारणाएं है । कोई कहता है कि वह पारिवारिक लोगों से मिलने विदेश जाते हैं । कोई कहता है राजनीतिक कार्यों से विदेश जाते हैं । कोई कहता है संगठनों के बुलावे पर विदेश जाते हैं । हम किसी तरह की अफवाहों पर नहीं जाना चाहते जब तक की ठोस सूचना न हो । लेकिन देश को और कम से कम हर कांग्रेसी को यह जानने का अधिकार तो है कि राहुल गांधी विदेश में किस से मिलने के लिए जाते हैं ? आखिर वह कौन है जिससे मिलने के लिए राहुल गांधी लालायित रहते हैं और हर चंद दिनों के बाद विश्राम के नाम पर विदेश चले जाते हैं । राहुल गांधी को न कांग्रेस पार्टी की चिंता है और न चुनावों की। पार्टी ने जो यात्रा निकाली है वह यात्रा भी बस एक मजाक बनकर रह गई है । कुछ दिन आधुनिक गाड़ियों में वह कुछ दूर , यात्रा चलती है और उसके बाद फिर बीच में रुक जाती है और राहुल गांधी विदेश चले जाते हैं
लगता यही है कि राहुल गांधी और कांग्रेस मान चुके हैं कि 2024 में आएगा मोदी ही , इसलिए 2024 के चुनाव को लेकर उन्हें कोई चिंता वाली बात नजर नहीं आती । हां क्षेत्रीय पार्टियां जरूर यह चाहती है की 2024 के चुनाव में वह अपनी ताकत को बनाए रखें ।
ममता बनर्जी चुनाव को लेकर काफी लंबे समय से गंभीर रही हैं । बीच में एक समय ऐसा भी आया की बंगाल में वह भाजपा पर भारी पड़ती दिख रही थीं लेकिन चुनाव से पहले संदेशखाली की घटना ने न केवल बंगाल को बल्कि पूरे देश को हिला कर रख दिया । खुद ममता बनर्जी को अंततः बैक फुट पर आना पड़ा । संपूर्ण विपक्ष ने संदेशखाली की घटना पर खतरनाक चुप्पी साध ली । आए दिन स्वत: संज्ञान लेने वाला सुप्रीम कोर्ट खामोश रहा । लेकिन भाजपा ने इस घटना को जोरदार तरीके से उठाया और अंततः ममता बनर्जी की सरकार को अपराधियों के खिलाफ कार्यवाही के लिए मजबूर किया गया । यह बात और है कि ममता बनर्जी अभी तक सारी कार्यवाही सिर्फ दिखाने के लिए कर रही है । लोकसभा चुनाव में उन्हें इसका खामियाजा भुगतना पड़ सकता है।
बिहार जो एक समय भाजपा को चुनौती पूर्ण लग रहा था अब एक तरफा सा लग रहा है । स्थिति यह है कि लालू यादव की पार्टी में भी भगदड़ मची है । तेजस्वी अपनी ओर से मेहनत काफी कर रहे हैं लेकिन उनकी पार्टी की गुंडा छवि उनका पीछा नहीं छोड़ रही है । राष्ट्रीय जनता दल के अनेक विधायक लगातार पार्टी छोड़कर सत्ता पक्ष के साथ जा रहे हैं । ऐसा लगता है मोदी और नीतीश मिलकर बिहार में एक बार फिर क्लीन स्वीप कर देंगे
उत्तर प्रदेश में अखिलेश यादव लगातार दम भर रहे थे और भाजपा को कांटे की चुनौती देने की बात कर रहे थे लेकिन उनके कुछ राजनीतिक फैसले उनकी क्षमता पर सवाल उठा रहे हैं । वह जयंत चौधरी को अपने साथ रोकने में नाकामयाब रहे । बताया जाता है की जयंत सपा के साथ ही रहना चाहते थे लेकिन अखिलेश यादव जयंत के कोटे में और कटौती कर रहे थे जिससे नाराज होकर जयंत चौधरी ने भाजपा की ओर रुख कर लिया । आश्चर्य जनक रूप से सपा ने कांग्रेस को 17 लोकसभा सीटें दे दीं। यह हर राजनीतिक विश्लेषक की समझ से परे है । कांग्रेस उत्तर प्रदेश में शून्य पर है । सही बात यह है कि अमेठी और रायबरेली में भी कांग्रेस के पास कार्यकर्ताओं का अकाल है , पूरे प्रदेश की तो बात ही छोड़ दीजिए । सबसे बड़ी बात यह है अखिलेश यादव ने समझौते के लिए राहुल गांधी का फोन तक उठाने से इनकार कर दिया लेकिन प्रियंका वाड्रा का फोन तुरंत उठा लिया और प्रियंका वाड्रा ने जितने सीटें मांगी , उतनी सीटें देने की घोषणा कर दी । समझ में नहीं आया कि अखिलेश यादव आखिर प्रियंका वाड्रा से इतने प्रभावित क्यों हैं ? क्यों उनको यह लगा की प्रियंका वाड्रा कह रही हैं तो इतनी सीटें दे ही देनी चाहिए । सच बात यह है कि सपा ने 17 लोकसभा सीट कांग्रेस को देकर अपनी हार स्वीकार सी कर ली है । इस समझौते से सपा के कार्यकर्ताओं में नकारात्मक संदेश गया है और नाराजगी भी है। कुलमिलाकर उत्तर प्रदेश में भाजपा पिछली सफलता से आगे जाती दिख रही है।
महाराष्ट्र में संपूर्ण विपक्ष 1 मंच पर आया था लेकिन वहां पर भी भाजपा ने उनकी एकता को तार-तार कर दिया । शरद पवार आए दिन चौंकाने वाले बयान देते हैं , इसलिए कुछ पता नहीं कि वह चाहते क्या हैं , चुनाव से पहले और चुनाव के बाद किसके साथ रहेंगे और किसके साथ नहीं रहेंगे । उद्धव ठाकरे गुट वाली शिवसेना को संजय राऊत ने खत्म करने की कसम खाली लगती है और उद्धव ठाकरे यह बात समझने को तैयार नहीं है । महाराष्ट्र में भी कांग्रेस कार्यकर्ता हताश हैं और कांग्रेस के बड़े नेता अपने भविष्य के लिए लगातार भाजपा नेतृत्व की ओर आशा भरे निगाहों से देख रहे हैं । मतलब बहुत साफ है कि महाराष्ट्र में भी भाजपा एक तरफा जीत की ओर बढ़ रही है । उत्तर भारत में कोई और चुनौती देता हुआ नहीं लग रहा ।
इस बार केरल और तमिलनाडु से जिस तरीके के संकेत मिल रहे हैं वह भाजपा के लिए उत्साहवर्धक हैं । भाजपा तमिलनाडु में डबल डिजिट में लोकसभा की सीट जीत जाए तो कोई ताज्जुब नहीं होगा । भाजपा केरल , तेलंगाना और आंध्र प्रदेश में भी कांग्रेस पर भारी पड़ती नजर आ रही है
सच बात यह है कि पूरे देश में विपक्ष सोता हुआ या हताशा में डूबा हुआ नजर आता है । भाजपा के लिए 2024 का चुनाव 2019 से ज्यादा आसान लग रहा है । विपक्ष के नेता यदि गंभीरता से काम लेते तो 2024 के चुनाव में भाजपा को चुनौती देने में सक्षम थे । लेकिन ऐसा लगता है कि उन्होंने 2024 तक सोते रहने की कसम खाली है । सच बात यह है कि विपक्ष के धुरंधर कार्यकर्ता भी यह सोचने को मजबूर है कि हमारे नेता आखिर कब सो कर उठेंगे ???
कई बार तो ऐसा लगता है जैसे खुद विपक्ष ने भाजपा के नारे इस बार 400 पार को पूरा करवाने का जिम्मा उठा रखा है । यह स्थिति एक लोकतांत्रिक देश के लिए खतरनाक है । मजबूत विपक्ष का होना लोकतांत्रिक व्यवस्था के लिए अच्छा है । लेकिन अफसोस है कि विपक्ष अपने ही कर्मों से लगातार अपनी जमीन खो रहा है । देश में किसी सर्वमान्य विपक्षी नेता का ना होना गलत संदेश दे रहा है । शरद पवार और ममता बनर्जी यह दो ऐसे नेता थे कि यदि सारा विपक्ष इन दोनों में से किसी एक को नेता मान लेता तो यह भाजपा के लिए चुनौती पेश कर सकते थे , लेकिन विपक्ष ने भाजपा के बजाय आपस में खुद ही एक दूसरे से लड़ने की ठान रखी है । ऐसा लगता है कि खुद विपक्ष को नहीं पता कि वो आखिर कब जागेगा ???