क्या इजरायली थल सेना हमास के जाल में
फंस सकती है?
इजरायल के निहत्थे लोगों पर हमास के क्रूर और घिनौने आतंकी हमले के बाद हमास और इजरायल के मध्य लड़ाई का प्रारंभिक दौर जारी है । अभी जब मैं यह स्तंभ लिख रहा हूं उस समय तक इजरायल ने फलस्तीन क्षेत्र में अपने थल सेना को नहीं उतारा है , हां थल सेना हमले के लिए पूरी तरह तैयार है, बस आदेश का इंतजार है। इजराइल और हमास की ओर से एक दूसरे पर हवाई हमले जारी है । लेबनान की तरफ से हिजबुल्ला एक नया मोर्चा खोलने का प्रयास करते हुए हमास की मदद करने का प्रयास कर रहा है लेकिन यह सब इतना आसान नहीं है । इसराइल जैसे शक्तिशाली राष्ट्र को हमास और लेबनान के हिज्बुल्लाह अपने आतंकी हमले से पराजित नहीं कर सकते । गाजा पट्टी में रहने वाले लोग परेशान हैं । निर्माण अधिकांश ध्वस्त हो चुका है । इजराइल फिलिस्तीन के लोगों को बिजली पानी और तमाम जरूरत की चीज मुहैया कराता था जो इजराइल ने फिलहाल रोक दी है । स्वाभाविक है अब इतने दिनों के बाद फलस्तीन क्षेत्र में बिजली पानी और जरूरी सामान कि किल्लत हो गई है । अंतरराष्ट्रीय स्तर पर गाजापट्टी में रहने वाले लोगों के लिए मानवीय संवेदना जागृत हो रही है जो स्वाभाविक भी है
सच यह है कि हमास जानबूझकर ऐसी स्थिति पैदा कर रहा है कि फलस्तीन के लोग इन समस्याओं से जूझें । जिससे दुनिया में इजरायली हमलों का विरोध बढ़े ।
असलियत में इस पूरे आतंकवादी हमले की जड़ ईरान है , जो चाहता है कि हमास और इजरायल के मध्य लड़ाई लंबी चले । यदि हमास और ईरान को फलस्तीन के लोगों से जरा भी हमदर्दी है तो उन्हें इसराइल सहित अन्य देशों के अपहृत नागरिकों को बिना शर्त तत्काल रिहा कर देना चाहिए । निश्चित रूप से उसके बाद इजरायल फिलिस्तीन के लोगों को जरूरी सामान उपलब्ध कराने के बारे में सोचेगा । लेकिन फिलहाल लगता है हमास फिलिस्तीन के लोगों को अभी और तड़पाएगा । यह उसकी रणनीति है ।
इस आतंकवादी हमले के बाद एक बात तो साफ जाहिर है कि हमास तो मात्र माध्यम था । मूल रूप से यह हमला ईरान द्वारा प्रायोजित था । ईरान ने हथियार , धन , तकनीक और अन्य जरूरी संसाधन हमास को उपलब्ध करा इजरायल पर हमला कराया।
प्रश्न उठता है कि ईरान को इससे क्या फायदा ?
दरअसल पिछले कुछ समय से सुन्नी अरब राष्ट्रों और इजरायल के मध्य पर्दे के पीछे बातचीत लगातार चल रही है । अनेक सुन्नी अरब राष्ट्र पिछले 70 सालों से चल रहे खूनी संघर्ष को समाप्त करने के लिए इजराइल के साथ बातचीत कर रहे थे । इस बातचीत को अमेरिका सहित अनेक पश्चिमी देश प्रोत्साहित कर रहे थे । शिया देश ईरान को रह नागवार लग रहा था । इसलिए उसने इस बातचीत को तुड़वाने के लिए हमास से हमला करवाया। उसे आशंका थी कि यदि सुन्नी अरब देशों और इजरायल में दोस्ती हो जाती है तो ईरान अलग थलग पड़ सकता है । ईरान काफी समय से अपनी सैन्य शक्ति बढ़ाने में जुटा है । उसकी इच्छा है कि वह दुनिया में इस्लामिक ताकत का नेतृत्व करें । उसको आशंका है कि यदि सुन्नी अरब देशों और इजरायल में तालमेल बैठ गया तो ईरान इस्लामिक जगत का नेतृत्व करने की महत्वाकांक्षा को पूरी नहीं कर सकेगा ।
अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा के कार्यकाल में अमेरिका ने ईरान को घातक स्तर पर जाकर बहुत छूट दी थी । ईरान ने उन छूटों का दुरुपयोग किया और पूरी ताकत अपने सैन्य संसाधन जुटाने में लगा दी । आज की तारीख में ईरान कोई कमजोर राष्ट्र नहीं है । उसके पास एक से एक अच्छे मिसाइल , ड्रोन और सुसज्जित सेना है। वह दुनिया भर के आतंकवादी समूहों को धन और अन्य संसाधन दे रहा है । हमास का पूरा आतंकवादी हमला ईरान द्वारा प्रायोजित लगता है। यह बात इजराइल भी जानता है और पूरी दुनिया भी जानती है । ईरान को भी इस बात का शक है कि इजराइल को इस आतंकवादी हमले के परदे के पीछे की ताकत का एहसास हो चुका है । ईरान को पूरा डर है कि यदि हमास और इजरायल के मध्य पश्चिमी देश समझौता करने में सफल हो गए तो इजराइल तत्काल ईरान पर हमला कर सकता है । ईरान , इजरायल से सीधे टकराव टालना चाहता है । उसकी कोशिश है कि इजरायल और हमास के मध्य लम्बा संघर्ष चले । फलस्तीन के लोगों को अमानवीय यातनाएं झेलनी पड़ें जिससे इजरायल की छवि खराब हो।
होगा क्या इस बारे में अभी कुछ नहीं कहा जा सकता लेकिन इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि इजराइल और ईरान के मध्य संघर्ष छिड़ सकता है । यदि इजराइल और ईरान के मध्य संघर्ष चला तो कई और राष्ट्र भी इस हमले में शामिल हो सकते हैं । अमेरिका सहित अनेक पश्चिमी देश किसी भी कीमत पर नहीं चाहेंगे कि इजराइल हमले में पराजित हो या इजरायल के अस्तित्व पर प्रश्न खड़ा हो जाए । इसलिए वह इजराइल को हर संभव सहायता भी उपलब्ध कराएंगे और जरूरत पड़ेगी तो खुद भी शामिल होंगे । हालांकि नहीं लगता कि उन्हें शामिल होने की जरूरत पड़ेगी । इजराइल के पास दुनिया के आधुनिकतम हथियार हैं और यदि उसके अस्तित्व पर सवाल आया तो वह किसी भी हद तक जा सकता है।
इजराइल और फलस्तीन के मामले में भारत की सरकारों ने आजादी के बाद से ही आतंकवाद के प्रति दोहरा मापदंड अपनाया है । दुर्भाग्य से भारत की पूर्व सरकारों ने कभी भी फिलिस्तीन के अंदर कार्यरत आतंकवादी गुटों की निंदा नहीं करी । यह पहली बार है जब भारत सरकार ने साफ-साफ संदेश दिया है कि हम आतंकवाद के खिलाफ हैं । इजराइल पर आतंकवादी हमला हुआ है और भारत इजरायल पर आतंकवादी हमले की कड़ी निंदा करते हुए इजरायल के साथ खड़ा है । इससे इजराइल में भी बहुत खुशी का माहौल है । इजराइल के लोग कह रहे हैं कि दुनिया के दो सबसे बड़े लोकतंत्र अमेरिका और भारत इजराइल के साथ खड़े हैं । भारत के अंदर भी 80% आबादी भारत सरकार के रुख से खुश है कि उसने पहली बार फलस्तीन और इजरायल के मध्य सही स्टैंड लिया है । आखिर इजरायल ने संकट की हर घड़ी में भारत का साथ दिया है । इसलिये भारत की जनता की संवेदनाएं हमेशा इजरायल के साथ रही हैं ।प्रधानमंत्री मोदी ने इजराइली प्रधानमंत्री से फोन पर बात करते हुए साफ कहा कि भारत आतंक के खिलाफ है और इजरायल के साथ है । दूसरी ओर फिलिस्तीन के राष्ट्रपति से भी प्रधानमंत्री मोदी ने बात की और उनसे कहा कि भारत फलस्तीन के हक का समर्थन करता है लेकिन भारत किसी भी प्रकार के आतंकवाद का विरोधी है । भारत ने खुद आतंकवाद के दंश को लंबे समय झेला है । यह तो 2014 के बाद मोदी सरकार के आने के बाद आतंकी गुटों में कुछ दशहत है और वह भारत में हमला करने से पहले 10 बार सोचते हैं । भारत में थोड़े से लोग ऐसे हैं जो हमेशा आतंकवाद के समर्थक रहे हैं । आतंकवाद चाहे इजरायल के खिलाफ हुआ हो , चाहे अमेरिका के खिलाफ हुआ हो, चाहे रूस के खिलाफ हुआ हो, चाहे इंडोनेशिया के खिलाफ हुआ हो ,या दुनिया में कहीं भी मानवता के खिलाफ हुआ हो यह लोग हमेशा आतंकवाद के समर्थन में खड़े नजर आते हैं। हालत यह है कि जब मुम्बई में पाकिस्तानी आंतकी गुटों ने वीभत्स हमला किया तब भी इन लोगों ने आतंकियों का समर्थन किया। यह आतंकवाद के पैरोकार है और आतंकवाद के पैरोंकार रहेंगे । इनको प्रोत्साहन भारत के कुछ राजनीतिक दलों से मिलता है जो इनका वोट लेने के लिए आतंकवाद के प्रति उनकी सोच को जाने अनजाने समर्थन करते हैं । इसराइल और हमास की लड़ाई में भी कांग्रेस पार्टी ने एक बार फिर ऐसा ही रूख दिखलाया है । उसने इजराइल पर हुए इतने घिनौने और क्रूर आतंकवादी हमले की निंदा करना जरूरी नहीं समझा बल्कि अप्रत्यक्ष रूप से हमास के आतंकी हमले को मौन समर्थन प्रदान किया है ।
इजराइल और हमास के मध्य युद्ध विकट स्थिति में उस दिन पहुंचेगा जब इजरायल की थल सेना गाजा पट्टी में प्रवेश करेगी । हमास ने गाजापट्टी में नीचे सुरंगों का बड़ा जाल बिछा रखा है ।
स्वाभाविक है ऐसे में यह संभव है कि इजरायल के सैनिक हमास के जाल में फंस जाए और इजराइल को भारी सैन्य कीमत चुकानी पड़े । उस स्थिति में इजरायल घातक कदम भी उठा सकता है।
अच्छा तो यही हो कि दुनिया फिलिस्तीन , हमास और ईरान पर दबाव डालें कि वह इजराइल और अन्य देशों के अपहृत नागरिकों को बिना शर्त तत्काल रिहा करें । हमास यदि ऐसा नहीं करता है तो पूरी दुनिया इजराइल के साथ खड़ी हो और आतंक की ताकत को कुचले फिर वह चाहे फलस्तीन में हो और चाहे ईरान मे ।
आतंकवाद पूरी दुनिया के लिए खतरा है । आतंकवाद पर किसी भी देश को दोहरा मानदंड नहीं अपनाना चाहिए । जब तक दुनिया में आतंकवाद है तब तक निर्दोष लोगों की जाने जाती रहेंगी । वक्त आ गया है कि भारत अमेरिका रूस ब्रिटेन जर्मन सहित तमाम देश इजराइल के साथ खड़े हो और आतंकवाद को निपटने के इजरायल के प्रयासों का पुरजोर समर्थन करें ।
मित्रों आज की चर्चा में फिलहाल इतना ही । फिर जल्दी मिलेंगे । इसराइल और हमास के युद्ध पर हमारी पैनी निगाह बनी रहेगी । ईरान की हरकतों पर भी हम अपनी निगाह रखेंगे और हर नई हलचल से आपको अवगत कराते रहेंगे। आप पढ़ते रहिए चर्चा का विषय डॉट कॉम ।