क्या भ्रष्टाचार सच में रोका जा सकता है???

भ्रष्टाचार और  बेरोजगारी भारत ही क्या पूरी दुनिया में नेताओं द्वारा सबसे ज्यादा बोला जाने वाला शब्द है।

आज हम बात कर रहे हैं बस भ्रष्टाचार की और वह भी भारत के संदर्भ में

भ्रष्टाचार भारत के लिए कोई नई चीज नहीं है । आजादी के बाद से हर चुनाव में यह मुद्दा रहा है । मुद्दा आज भी है और विश्वास करिए मुद्दा आगे भी रहेगा ।

प्रश्न है क्या मोदी और योगी भ्रष्टाचार को रोक सकते हैं ?
क्या कांग्रेस की सरकार भ्रष्टाचार को रोक सकती है ?
क्या किसी तीसरे मोर्चे की सरकार भ्रष्टाचार को रोक सकती है ?
या  भारत में कोई ऐसी राजनीतिक शक्ति है जो सत्ता में आने पर भ्रष्टाचार को रोक सकती है ?

हमने लंबे समय तक कांग्रेस की सरकार देखी है
हमने तीसरे मोर्चे की सरकार भी देखी है
और हम मोदी और योगी जैसे नेताओं के नेतृत्व में भाजपा की सरकार भी देख रहे हैं

क्या इनमें से किसी पार्टी की सरकार में भ्रष्टाचार पूरी तरह समाप्त हुआ है या किसी हद तक उस पर लगाम लगी है ???

मुझे यह लिखने में कोई संकोच नहीं है कि किसी भी सरकार में भ्रष्टाचार पूरी तरह समाप्त नहीं हुआ है लेकिन हर सरकार में भ्रष्टाचार के मापदंडो में और उसके स्तर पर बदलाव हमेशा हुआ है ।

भ्रष्टाचार पर अन्ना के नेतृत्व में एक बड़ा आंदोलन हुआ, युवाओं में एक नयी उम्मीद जगी। लेकिन परिणाम जब सामने आया तो पूरे देश ने खुद को ठगा महसूस किया।

उस आंदोलन से जन्मे जिन लोगों ने दिल्ली में प्रदेश सरकार बनाई उन्होंने भ्रष्टाचार को नयी नयी ऊंचाई पर पहुंचा दिया। उनके कई मंत्री जेल में हैं और कई जेल जाने की तैयारी में हैं। हालत यह है कि यदि लालू यादव जैसे नेता से उनकी तुलना की जाये तो उनके मुकाबले लालू वेहतर लगते हैं। स्कूलों के आसपास शिक्षा सामग्री की दुकानें होनी चाहिए लेकिन इस सरकार ने दिल्ली के स्कूलों के आसपास शराब परोसनी वेहतर समझी ।

भारतीय लोकतंत्र के चार महत्वपूर्ण स्तंभ है विधायिका कार्यपालिका न्यायपालिका और मीडिया

भ्रष्टाचार पूरी तरह से समाप्त तभी हो सकता है जब यह चारों स्तंभ स्वतंत्र हों और इनमें ऐसे तत्व हों जो किसी भी कीमत पर आर्थिक और मानसिक दोनों तरह के भ्रष्टाचार को समाप्त करना चाहते हो ।

अफसोस की बात यह है कि आज चारों स्तंभ भ्रष्टाचार में लिप्त हैं ।

यदि मैं 2013 तक और 2013 के बाद की मीडिया को देखता हूं तो स्थिति यह है की 2013 तक भारत का मीडिया भ्रष्टाचार की दलदल में इतना सना हुआ था कि उसका चेहरा भी दिखाई नहीं देता था ।
प्रिंट मीडिया थोड़ा बहुत सही भी था लेकिन इलेक्ट्रॉनिक मीडिया का बहुत बुरा हाल था। छोटे-छोटे चैनलों के मालिकों की बात छोड़ दीजिए उनके एंकर और पत्रकार भी करोड़पति और अरबपति बन गए ।
इलेक्ट्रॉनिक मीडिया सच घटनाओं को छुपाता था और जनता को गुमराह करता था ।

देश में सांप्रदायिक सदभाव के नाम पर सारे चैनल झूठ परोसते थे और दंगाइयों को शांति का दूत बनाकर पेश करते थे । इसके लिए उन्हें वाकायदा देश विदेश से  फंडिंग की जाती थी । नतीजा यह था कि आयदिन देश दंगों से जूझता था और दंगाइयों के हौंसले बुलंद रहते थे ।

2014 में नई सरकार आने के बाद मीडिया में एक नई जागृति आई । उसमें सच को सच कहने की हिम्मत आई उसने दंगाइयों और भ्रष्टाचारियों को बेनकाब करना शुरू किया । नतीजा यह था की 2013 तक मीडिया पर हावी गैंग 2014 के बाद की मीडिया को गोदी मीडिया कहने लगा जबकि वास्तव में गोदी मीडिया 2013 तक हावी था ।  लेकिन यह कहना आज भी गलत होगा की 2014 के बाद का मीडिया भी भ्रष्टाचार से मुक्त है । भ्रष्टाचार आज भी है हां 2013 से कम है ।

यदि न्यायपालिका की बात करें तो वहां पर सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट से नीचे इतना बुरा हाल है जिसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती । सच यह है की न्याय मिलता नहीं है बल्कि न्याय बिकता है । मेरे बहुत से मित्र वकालत पेशे में है जो कहते हैं कि अब हम अदालत में खड़े होकर तर्क नहीं देते , कानून की व्याख्या नहीं करते , बल्कि जज के सामने याचक बनकर खड़े होते हैं और पर्दे के पीछे यह फैसला होता है कि मुकदमे का विजेता कौन होगा । हां हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के स्तर पर निश्चित रूप से यह कहा जा सकता है कि वहां आर्थिक रूप से इतना बड़ा भ्रष्टाचार नहीं है लेकिन वहां पर मानसिक , वैचारिक और पारिवारिक भ्रष्टाचार हद से ज्यादा है ।

इन अदालतों में अधिकांश जज कॉलेजियम से आते हैं । जज बनने का उनका आधार उनकी योग्यता नहीं होती बल्कि रिश्तेदारियां और उनके राजनीतिक संबंध होते हैं ।
स्वाभाविक है कि मामलों का निपटारा करते समय वह इन दोनों बातों का ध्यान रखते हैं और इसीलिए आज भारत में बहुत बड़ी संख्या में यदि कहूं कि बहुमत संख्या में जनता का इन अदालतों से विश्वास उठ गया है तो कुछ गलत नहीं होगा । वह दो समांतर घटना होती है तब भी एक घटना को अलग चश्मे से देखते हैं और दूसरी घटना को अलग चश्मे से देखते हैं । आमतौर पर इसका कारण राजनीतिक होता है ।

यदि कॉलेजियम की व्यवस्था को हटाकर अखिल भारतीय न्यायिक सेवा जैसी किसी परीक्षा के माध्यम से जजों की नियुक्ति हो तब भी इस बात की गारंटी नहीं है कि भ्रष्टाचार समाप्त हो जायेगा।

इसका सबसे बड़ा उदाहरण भारत के सरकारी कर्मचारी हैं , जहां चपरासी से लेकर उच्च स्तर तक निगाह डालिए और गहराई से देखिए तो आपको भ्रष्टाचार का समुद्र बहता हुआ दिखाई देगा । उच्च स्तर पर यहां तक कहा जाता है कि ऐसे ऐसे पद होते हैं जहां कई कई करोड़ रुपए महीने के अधिकारी तब कमा लेता है जब वह सामाजिक दृष्टि से ईमानदार होता है और जो बेईमान ही है उसकी तो बात ही छोड़िए

लेकिन इसका मतलब यह नहीं है की प्राइवेट संस्थानों में भ्रष्टाचार नहीं होता हां सरकारी संस्थाओं के अपेक्षा कम होता है । याद रखिए मैं टैक्स चोरी की बात नहीं कर रहा ,  मैं बस भ्रष्टाचार की बात कर रहा हूं । मैने खुद प्राइवेट संस्थानों में भी भ्रष्टाचार होते हुए खूब देखा है ।

अब यदि भारत के राजनेताओं पर निगाह डालें तो यह मानना पड़ेगा की आजादी के समय और उसके काफी समय बाद तक ईमानदार राजनेता देश में थे । चाहे वह लोहिया हो चाहे वह विनोबा भावे हो चाहे वह सरदार वल्लभ भाई पटेल हो चाहे वह डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद हो चाहे वह डॉक्टर भीमराव अंबेडकर हो चाहे वह लाल बहादुर शास्त्री हो चाहे वह कर्पूरी ठाकुर हो चाहे वह गोविंद बल्लभ पंत हो ऐसे सैकड़ो राजनेता मिल जाएंगे जिनके ऊपर ₹1 के भ्रष्टाचार का आरोप भी आप लगा नहीं सकते ।
राजनेताओं में भ्रष्टाचार की शुरुआत तब हुई जब छोटी-छोटी पार्टियों का राजनीति में उदय हुआ । सच यह है कि यह छोटी-छोटी पर्टियां है ही राजनीतिक भ्रष्टाचार की संतान । यह पार्टियों कम है बल्कि  पारिवारिक व्यापारिक संस्थान ज्यादा हैं ।
अधिकतर छोटी पार्टियां या तो अपनी जातियों का टिकट बेचती हैं या अपने क्षेत्र का टिकट  बेचती हैं ।

बेचना उनकी राजनीति का मूल तत्व है ।

राष्ट्रीय स्तर पर भारत में या तो कम्युनिस्ट पार्टियां थी या भारतीय जनता पार्टी या कांग्रेस थी । एक समय तक कमोवेश यह सभी पार्टियां बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार से मुक्त थीं । धीरे-धीरे कम्युनिस्ट पार्टियां तो अस्तित्वहीन हो गईं और कांग्रेस और भाजपा ही रह गई । कांग्रेस पार्टी में राजीव गांधी के समय से भ्रष्टाचार ने व्यापक रूप लेना शुरू किया और धीरे-धीरे पूरी कांग्रेस पार्टी को भ्रष्टाचार ने अपने आगोश में ले लिया । राजीव गांधी चाहकर भी अपने परिवार जनों को भ्रष्टाचार से रोक नहीं पाए । यदि उन्होंने समय रहते बस अपने परिवार पर नियंत्रण कर लिया होता तो शायद शुरुआत में ही वह कांग्रेस के अंदर भ्रष्टाचार  को किसी हद तक रोक सकते थे । 

यूं तो डाक्टर मनमोहन सिंह को भारतीय राजनीति का विद्वान और ईमानदार राजनेता कहा जाता है लेकिन संसद में प्रधानमंत्री मोदी द्वारा उनके बारे में दिया गया बयान कि डॉक्टर साहब रेनकोट पहन कर नहाते थे ,  बिल्कुल सही था क्योंकि डॉक्टर मनमोहन सिंह की सरकार का जो दूसरा कार्यकाल था वह आजाद भारत के बाद का भ्रष्टाचार का स्वर्णिम काल था । देश में चारों ओर लूट थी ।

यदि मैं भाजपा की बात करूं तो यह कहना तो अतिशयोक्ति होगा कि भाजपा भ्रष्टाचार मुक्त है लेकिन यह कहना सही होगा कि  ऊपरी लेवल पर भ्रष्टाचार जीरो लेवल पर आ गया है  ।

भाजपा की कमी है कि भाजपा की सरकार  अपने कार्यकर्ताओं की कम और अधिकारियों की ज्यादा सुनती है इसलिए चर्चा यह है की सरकारी विभागों में भ्रष्टाचार के स्तर में कोई कमी नहीं है । और यदि मैं भाजपा के कार्यकर्ताओं की भी बात करूं तो सच यह है वहां पर भी  हालत बहुत खराब हैं।

दरअसल राजनीति अब कोई सेवा भावना नहीं रह गई है । राजनीति एक व्यापार का रूप ले चुकी है । अधिकांश दलों के पास वहीं कार्यकर्ता हैं जो कुछ कमाने के लिए राजनीति में आये हैं।  सरकारी बदल जाती है तत्काल कार्यकर्ता बदल जाते हैं आपको नई सरकार में भी वही चेहरे दिखाई देते हैं जो पिछली सरकार में होते थे । यदि वह चेहरे नहीं भी होते हैं तो वह पर्दे के पीछे से अपनी व्यवस्थाएं कर लेते हैं ।

अब मुख्य सवाल यह है कि भ्रष्टाचार आखिर रूकेगा कैसे और क्या भ्रष्टाचार रुक भी सकता है या नहीं ???

यदि मैं ईमानदारी की बात करूं तो पूरे भारतीय उपमहाद्वीप में भ्रष्टाचार लोगों की रग रग में समाया हुआ है । हां इसमें भी कुछ क्षेत्र विशेष होते हैं कि वहां भ्रष्टाचार कम है और उसे इलाके में ज्यादा है । लेकिन कमोबेश ईमानदार लोगों की संख्या बहुत कम । कहा यह भी जाता है की कोई व्यक्ति ईमानदार इसलिए है क्योंकि उसे बेईमानी का मौका ही नहीं मिला । मैं यह तो नहीं कहूंगा कि यह सच है लेकिन यह जरूर कहूंगा की सच्चाई का थोड़ा सा अंश इसमें है ।

कम से कम मैं यह समझता हूं कि भारत जैसे देश में भ्रष्टाचार को रोकना टेड़ा काम है । टेक्नोलॉजी के उपयोग से भ्रष्टाचार को काफी हद तक रोका तो जा सकता है । और हम यह देख भी रहे हैं कि मोदी सरकार के आने के बाद टेक्नोलॉजी का उपयोग जिन-जिन क्षेत्रों में बढ़ा है उन क्षेत्रों में भ्रष्टाचार में कमी आई है ।

भ्रष्टाचार की मूल जड़ में है विवेक । जहां पर भी अधिकारी हो या जज हो या नेता हो या आम आदमी उसके विवेक पर निर्णय हो तो वहां पर भ्रष्टाचार होता है ।

मैं इस स्तंभ के माध्यम से इतनी नकारात्मक ऊर्जा तो नहीं भरना चाहता कि भ्रष्टाचार समाप्त हो  ही नहीं सकता लेकिन समाज के सारे स्तंभों पर निगाह डालने के बाद यह जरूर कह सकता हूं कि भ्रष्टाचार समाप्त होना बहुत मुश्किल है । यह तभी समाप्त होगा जब समाज का बहुत बड़ा वर्ग एक साथ यह प्रण कर ले कि वह बेईमानी के साथ खड़ा नहीं होगा और यह आसान नहीं होता

आज चर्चा यहीं तक आगे फिर किसी बिषय पर चर्चा करेंगे।।

9 thoughts on “क्या भ्रष्टाचार सच में रोका जा सकता है???”

  1. सच यह है कि भारत में भ्रष्टाचार रोकने की बात करने बाले खुद भ्रष्टाचार का मौका ढूंढ़ते हैं
    हालांकि अपवादों को नकारा नहीं जा सकता

  2. क्या नेता, क्या अधिकारी, क्या पत्रकार और क्या जज यहां हर कोई पैसा कमाने का रास्ता पहले तलाशता है । भ्रष्टाचार भाजपा राज में भी है लेकिन बाकी की सरकारों के मुकाबले बहुत कम । मैं सहमत हुं कि इसे रोकना आसान नहीं लेकिन फिर भी प्रयास जारी रहने चाहिए

  3. जो भ्रष्टाचार रोकने की बात करते हैं वही भ्रष्टाचार का मौका देखते हैं। क्या नेता, क्या अधिकारी, क्या पत्रकार, क्या जज सभी भ्रष्टाचार के रास्ते तलाशते हैं।
    यह सच है कि भ्रष्टाचार रोकना मुश्किल काम लेकिन प्रयास जारी रहने चाहिए।
    भाजपा के राज में फिर भी भ्रष्टाचार कम है

  4. रणवीर

    क्या इसका मतलब हमें भ्रष्टाचार को लेकर शिकायत छोड़ देनी चाहिए ? इस बात में दम है कि भ्रष्टाचार समाज की रग रग में समाया है और लोग खुद ही इसको बढ़ावा भी देते हैं

    1. विश्वपति

      प्रयास छोड़ देना गलत होगा। जहां तक सम्भव हो, भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ना चाहिए

  5. सुदेश यादव

    भ्रष्टाचार भले ही खत्म न किया जा सके लेकिन कम अवश्य किया जा सकता है। समस्या यह है नेता कमोवेश सभी भ्रष्ट हैं, उनकी वजह से ही अधिकारी भ्रष्ट हैं। लोकतंत्र में नेता सर्वोच्च हैं और उनमें भ्रष्टाचार को लेकर अंदरुनी एकता रहती है।

    1. विश्वपति

      यह बात सच है कि नेताओं में भ्रष्टाचार को लेकर एकता रही है । सरकारें बदलती थी लेकिन न जांच न सजा। बस चुनाव तक एक दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप। लेकिन मोदी सरकार इस प्रथा को तोड़ रही है। भ्रष्टाचारी नेताओं और अफसरों पर कार्रवाई हो रही है । इसलिए ही सारे भ्रष्टों ने मिलकर इंडी एलायंस बनाया है कि पहले मोदी को हटाओ फिर मिलकर खाओ

  6. to kya hame yah man lena chahiye ki hame bhrashtachar ke sath hi jeena aur marna hai . bharat ki janta ne hamesha bhrashtachar ke khilaf vote diya hai lekin leaders ne unko thaga hai . delhi bala kejariwal uska latest example hai jo khud hi nahi uski puri party bhrastachar mein sanlipt hai . aap hi batao janta kis par vishwas kare

    1. विश्वपति

      मैं यह तो नहीं कहूंगा कि हमें भ्रष्टाचार के साथ ही जीना और मरना है लेकिन फिर भी सहना तो है , साथ में जहां तक सम्भव हो लड़ना भी है। यह सच है कि भ्रष्टाचार पर नेताओं ने हमेशा जनता को ठगा है। जहां तक बात केजरीवाल की है तो सब जानते हैं यह अर्बन नक्सल भ्रष्ट लोगों का समूह भर है

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