अंततः विपक्षी दलों की मुम्बई बैठक भी विफल?

विपक्षी गठबंधन आई एन डी आई ए की तीसरी बैठक भी संपन्न हो गई लेकिन आपसी मत भेदों के चलते संयोजक के नाम पर कोई फैसला नहीं हो सका । चुनाव सिर पर है । भाजपा पूरी तैयारी से चुनाव में जुटी है । विपक्ष हल्ला तो लगातार कर रहा है लेकिन किसी ठोस रणनीति के साथ सामने नहीं आ पा रहा । पहले पटना बैठक में कहा गया कि संयोजक का नाम सामने आएगा । फिर कहा गया कि बेंगलुरु बैठक में संयोजक का नाम सामने आएगा । फिर कहा गया कि मुंबई बैठक में संयोजक का नाम तय कर दिया जाएगा । मुंबई की बैठक संपन्न होने के बाद भी संयोजक के पद पर कोई फैसला नहीं हो सका । मतलब बहुत साफ है की दिखावे के लिए यह सारे दल किसी एक शानदार होटल या रिसोर्ट में मीटिंग तो करते हैं लेकिन उनके मन और दिल मिले नहीं है । मुंबई की बैठक में जो कार्यकारिणी की घोषणा की गई है , उसमें शरद पवार को छोड़ कोई भी पहले और दूसरे दर्जे का नेता दिखाई नहीं देता , तीसरे और चौथे दर्जे के नेताओं को कार्यकारिणी में शामिल किया गया है । इससे ऐसा लगता है की सब कुछ बस औपचारिकता है और गंभीरता का अभाव है । मुंबई की बैठक शुरू होने से पहले ही भाजपा ने संसद के विशेष सत्र का बिना एजेंडा बताएं पांसा फेंक दिया । पूरे देश में सवाल खड़ा हो गया कि ऐसा कौन सा मुद्दा है जिसके कारण सरकार को अचानक संसद का विशेष सत्र बुलाना पड़ रहा है । 

आशंकाएं कई हैं , जैसे एक देश एक चुनाव या समान नागरिक संहिता। ऐसे में  उम्मीद थी कि विपक्षी दल मुंबई की बैठक में गंभीरता से बातचीत करेंगे और भाजपा का मुकाबला करने के लिए किसी ठोस रणनीति के साथ सामने आएंगे। उम्मीद थी कि संयोजक या पीएम पद पर किसी नाम के साथ सामने आएंगे । लेकिन सारी आशाएं चकनाचूर हो गई । बहुत साफ दिखाई दे रहा है कि नीतीश कुमार ममता बनर्जी अरविंद केजरीवाल और राहुल गांधी के मध्य संयोजक पद को लेकर कड़ा मुकाबला चल रहा है । लालू यादव सीधे-सीधे दोहरा खेल खेल रहे हैं । एक और उन्होंने नीतीश कुमार को अपने जाल में फंसा रखा है और दूसरी ओर वह कांग्रेस के साथ खड़े दिखाई देते हैं । इस स्तंभ लेखक का मानना है कि लालू यादव अंततः राहुल गांधी के पक्ष में ही खड़े होंगे और नीतीश कुमार को पछताना पड़ेगा। कांग्रेस के नेताओं ने बयानबाजी करी कि नये सांसद पीएम चेहरे का चयन करेंगे और जिस दल के ज्यादा सांसद होंगे उसी का पीएम होगा। इशारा साफ है की राहुल गांधी पीएम पद के दावेदार होंगे क्योंकि इस विपक्षी गठबंधन में कांग्रेस से ज्यादा सांसद शायद ही किसी अन्य दल के हों । ममता बनर्जी और अरविंद केजरीवाल अभी तक किसी भी कीमत पर राहुल गांधी को नेता मानने को स्वीकार नहीं है । मुंबई की बैठक में चौथी बैठक की कोई तारीख या कोई स्थल घोषित नहीं किया गया । इसका मतलब है मतभेद गंभीर है । यहां तक की विपक्षी गठबंधन आईएनडीआईए का लोगो भी जारी नहीं किया जा सका । विपक्षी गठबंधन कि यदि यही गति रही और मतभेद इसी तरह से कायम रहे तो भाजपा को 300 पार जाने से कोई रोक नहीं सकता । सच बात यह है कि विपक्षी गठबंधन की मीटिंग में सब एक दूसरे की पीठ में छुरा भोंकने की ताक में रहते हैं । मुंह में राम बगल में छुरी यह स्थिति बैठक में सब की होती है । 

स्थिति यह है शिवसेना उद्धव गुट के लोग उद्धव ठाकरे तक का नाम पीएम के रूप में उछाल देते हैं , जबकि सपा वाले अखिलेश यादव का नाम आगे बढ़ा देते हैं । मतलब कोई गंभीरता ही नहीं है ऐसे में सवाल है कि भाजपा का मुकाबला यह दल कैसे करेंगे ।  गठबंधन का कहना है कि साढ़े चार सौ सीटों पर भाजपा को वह सीधा मुकाबला देंगे । लेकिन इस सीधे मुकाबले का कोई मतलब ही नहीं है । उदाहरण के लिए मध्य प्रदेश छत्तीसगढ़ राजस्थान में कांग्रेस और भाजपा का मुकाबला होगा और कौन सा तीसरा दल ऐसा है जो विपक्ष की मदद करेगा । इसी तरह से दिल्ली में आप और भाजपा का मुकाबला होगा कांग्रेस का वहां कोई वजूद ही नहीं है तो आप की मदद कौन करेगा । उत्तर प्रदेश में कांग्रेस के पास हर जिले में 50 लोगों की टीम भी नहीं है , फिर सवाल है सपा का की मदद कौन करेगा । बसपा अकेले चुनाव लड़ने की घोषणा कर चुकी है और राष्ट्रीय लोक दल का अभी कुछ पता नहीं है कि उनकी खिचड़ी किसके साथ पकेगी । बिहार की स्थिति बहुत साफ है मुकाबला भाजपा और राष्ट्रीय जनता दल के बीच होगा । 

नीतीश कुमार का जनता दल  अपनी विश्वसनीयता खो चुका है । लालू और नीतीश की सरकार बनने के बाद जितने भी चुनाव हुए हैं उनके परिणाम साफ-साफ बताते हैं कि बिहार में नीतीश कुमार जीरो हो चुके हैं । कांग्रेस बिहार में पहले से ही जीरो है ऐसे में सवाल है राष्ट्रीय जनता दल के उम्मीदवारों की मदद कौन सा तीसरा कल करेगा । इसलिए विपक्षी दलों का यह कहना कि साढ़े चार सौ सीटों पर हम भाजपा को सीधा मुकाबला देंगे ,  इसका कोई मतलब नहीं है।  सच यह है कि  विपक्षी गठबंधन में अधिकांश दलों का बहुत ही सीमित दायरे में प्रभाव है और वह  सीमित दायरे से हटकर किसी दूसरे साथी की मदद करने की स्थिति में नहीं हैं । अच्छा होता विपक्षी गठबंधन इन सच्चाइयों को स्वीकार करें और जल्दी से जल्दी आपसी मतभेदों को दूर करें । फाइव स्टार होटल में बैठकर दावत खाने से और प्रेस  कांफ्रेंस करने से चुनाव नहीं जीते जाते । चुनाव जमीन पर मेहनत करने से जीते जाते हैं । अभी तक कोई भी विपक्षी दल जमीन पर मेहनत करता हुआ नजर नहीं आ रहा । कांग्रेस हमेशा की तरह हवा में राजनीति कर रही है । राहुल गांधी में गंभीरता की झलक दूर तक दिखाई नहीं देती । लोग उन्हें गम्भीरता से लेते ही नहीं । 

उनकी छवि आज भी पप्पू जैसी है । और वह प्रेस कॉन्फ्रेंस में भी पप्पू की तरह ही बात करते हैं ।
विपक्षी गठबंधन को यदि भाजपा को 300 पार जाने से रोकना है तो सितंबर माह में सब कुछ तय कर लेना होगा , अन्यथा मुकाबले से खुद को बाहर समझे और भाजपा 2024 का चुनाव एक तरफा जीत जाएगी । वैसे भी अनेक विपक्षी दलों के बड़े नेता निजी बातचीत में खुद स्वीकार करते हैं की 2024 में आएगा मोदी ही  । महाराष्ट्र में अजीत पवार ने खुद कहा कि एनसीपी की बैठक में पवार साहब हमेशा यह कहते हैं की 2024 में तो मोदी ही आएगा । सवाल है कि यदि विपक्ष के दलों को यह बात पता है कि 2024 में मोदी ही आएगा तो इन फाइव स्टार होटल में बैठकर दावतों पर खर्च करने से और कुछ न्यूज ट्रेडर्स को बुलाकर प्रेस कांफ्रेंस करने से क्या फायदा । बेहतर यह है काम करना है तो जमीन पर करें । अपने झगड़े निपटाए , अपने मतभेद दूर करें , आपसी एकता कायम करें जिससे जनता कुछ सोच सके की हां इस खिचड़ी गठबंधन को कुछ अहमियत देनी है या नहीं देनी है ।


चर्चाओं के इस दौर में बस इतना ही , आगे और भी चर्चाएं होंगी । उन चर्चाओं के साथ फिर आपके सम्मुख आऊंगा । देखते हैं विपक्ष को लेकर और सत्ता पक्ष को लेकर और क्या नई चर्चाएं बाजार में आती है । फिलहाल तो सब की निगाह सरकार की ओर है कि आखिर संसद का विशेष सत्र बुलाने के पीछे उसका मकसद क्या है ? बहुत सारी आशंकाएं हवा में उड़ रही हैं । जैसे ही सत्र पूरा होगा ,  आपके सम्मुख नई चर्चाओं को लेकर हाजिर होऊंगा तब तक के लिए नमस्कार

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