अविश्वास प्रस्ताव - कांग्रेस का सैल्फ गोल ?
2024 के चुनाव से पहले कांग्रेस ने अपने विपक्षी साथियों से मिलकर मोदी सरकार के खिलाफ लोकसभा में अविश्वास प्रस्ताव पेश किया । इस बार बहाना था मणिपुर की हिंसा । मजे की बात यह कि 2018 में जब कांग्रेस ने मोदी सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पेश किया था तभी मोदी ने विपक्ष से कहा था कि 2023 में आप लोग फिर अविश्वास प्रस्ताव लेकर आओगे।
जिस तरीके से मणिपुर की हिंसा पर देशभर में भ्रम फैलाया जा रहा था और कांग्रेस उसको एक अंतरराष्ट्रीय मुद्दा बनाने को प्रयासरत थी तो ऐसा लगता था कि शायद परंपराओं से अलग हटकर खुद राहुल गांधी अविश्वास प्रस्ताव पर चर्चा की शुरुआत करेंगे और मणिपुर पर कुछ खास तथ्यों के साथ अपनी बात रखेंगे ।
परंपराओं के अनुसार अविश्वास प्रस्ताव पर चर्चा पहले से ही नेता विपक्ष करते रहे हैं । अभी नेता विपक्ष पश्चिम बंगाल से कांग्रेस के सांसद अधीर रंजन चौधरी हैं । परंपरा के हिसाब से उन्हीं को चर्चा की शुरुआत करनी चाहिए थी । लेकिन शायद ममता बनर्जी के दबाव के चलते कांग्रेस ने अविश्वास प्रस्ताव की चर्चा में अधीर रंजन चौधरी को बोलने का मौका ही नहीं दिया । खुद राहुल गांधी ने भी चर्चा की शुरूआत नहीं करी । चर्चा की शुरुआत असम से कांग्रेस के सांसद तरुण गोगोई ने करी लेकिन वह भी मणिपुर पर कोई प्रभावशाली तरीके से अपनी बात नहीं कर पाए । उनके भाषण में मणिपुर को लेकर ऐसे कोई ऐसे नये तथ्य नहीं थे जो कांग्रेस देश को लोकसभा में चर्चा के माध्यम से बताना चाहती हो ।
चूंकि 2024 का चुनाव सिर पर है तो उम्मीद थी कि विपक्ष की ओर से जोरदार प्रहार होंगे जो भाजपा के लिए भारी भी पढ़ सकते हैं । लेकिन वास्तविकता इसके उलट रही । विपक्ष की ओर से एक भी सांसद चर्चा में अपना प्रभाव नहीं छोड़ पाया । राहुल गांधी के भाषण से तो लगा की वह अभी भी वही है जहां 10 – 15 साल पहले थे । कोई नयापन नहीं , कोई नई शैली नहीं , कोई नए तथ्य नहीं , बस व्यक्तिगत रूप से मोदी पर और देश के एकाध उद्योगपति पर हमला करना । देश उनका यह भाषण आए दिन सुनता रहता है । उन्होंने मणिपुर हिंसा के नाम पर भारत माता की हत्या का आरोप तो लगा दिया लेकिन यह बताना भूल गये कि इसके बीज 1949 में उनके परिवार ने ही बोये थे।
मणिपुर की हिंसा के बारे में सभी जानते हैं कि मणिपुर हाई कोर्ट के एक निर्णय के बाद मणिपुर में हिंसा शुरू हुई। मणिपुर में कुकी और नागा बहुतायत में ईसाई हैं । हमने अपने पूर्व आर्टिकल में बताया भी है कि कांग्रेस सरकार ने 1949 से मणिपुर के मूलनिवासी मैतेयी समुदाय के साथ घोर अन्याय किया है । मणिपुर के क्षेत्रफल के 90% हिस्से पर अनुसूचित जनजाति के नाम पर कुकी और नागा ईसाई समुदाय रहने को अधिकृत हैं । यह मणिपुर का सम्पूर्ण पहाड़ी इलाका है । आबादी में यह समुदाय मात्र 40 % है ।
मैतेयी समुदाय को मणिपुर के क्षेत्रफल के मात्र 10% हिस्से में रहने को मजबूर किया गया है । यह सम्पूर्ण मैदानी इलाका है । मैतेयी का आबादी में अनुपात 53% है ।
कुकी और नागा मैदानी मणिपुर में भी जमीन खरीद सकते हैं और रह सकते हैं लेकिन मैतेयी समुदाय न पहाड़ पर जमीन खरीद सकता है और न रह सकता है।
स्पष्ट है कांग्रेस ने ही एक मणिपुर को दो हिस्सों में बांट दिया ।
मैतेयी समुदाय इस अन्याय के खिलाफ लगातार लड़ाई लड़ता रहा है । मई माह में मणिपुर हाई कोर्ट ने मणिपुर सरकार को जल्द ही मैतेयी समुदाय की मांग पर फैसला लेने को कहा । जिसका कुकी समाज ने विरोध किया । मैतेयी समुदाय के खिलाफ व्यापक हिंसा हुई । स्वाभाविक है कि कुछ इलाकों में मैतेयी ने प्रतिरोध भी किया होगा और हो सकता है कि कुछ इलाकों में जवाबी कार्रवाई भी की हो ।
लेकिन मणिपुर हिंसा में मूल रूप से पीड़ित मैतेयी समुदाय है ।
कांग्रेस देश भर में मणिपुर के पीड़ित समुदाय को तो हमलावर और हमलावर को पीड़ित बताने का प्रपंच रच रही है। क्यों कि मैतेयी बहुतायत में सनातनी हिन्दू हैं ।
सुप्रीम कोर्ट द्वारा मणिपुर के एक पुराने वीडियो का स्वतः संज्ञान लेने के कारण कांग्रेस के हौसले और बुलंद हो गए । यह वीडियो कांग्रेस की टूलकिट का हिस्सा मालूम देता है । अपने इसी अभियान को हवा देने के लिए कांग्रेस ने मणिपुर हिंसा को आधार बनाकर अविश्वास प्रस्ताव का नोटिस दिया । कांग्रेस आलाकमान यह भूल गया कि मणिपुर पर जब संसद में बात होगी तो बात 1949 से शुरू होगी और बात पूरे नॉर्थ ईस्ट तक जाएगी । नॉर्थ ईस्ट में कांग्रेस के बहुत सारे कारनामे आज भी देश से छुपे हुए हैं । मिजोरम के भारतीय नागरिकों पर कांग्रेस द्वारा कराए गए 5 मार्च 1966 के हवाई हमले को देश की एक पूरी पीढ़ी जानती तक नहीं । स्वाभाविक है देश चर्चा के माध्यम से उन कारनामों को जानेगा और कांग्रेस की और किरकिरी होगी ।
यही कारण है कि तरुण गोगोई ने जब अविश्वास प्रस्ताव पर चर्चा शुरू करते हुए मणिपुर का जिक्र किया तो आधी अधूरी बात की । उन्होंने मणिपुर की समस्या पर बात करने से परहेज किया । कांग्रेस सहित विपक्ष के सभी सांसद मणिपुर में हिंसा पर तो बोले लेकिन वह मणिपुर की मूल समस्या पर बिल्कुल नहीं बोले । उन्हें मालूम था कि यदि मूल समस्या पर बोलेंगे तो कांग्रेस की और किरकिरी होगी
प्रश्न है कॉन्ग्रेस क्या कदम उठाने से पहले कुछ सोचती नहीं है । यदि अविश्वास प्रस्ताव का नोटिस दे ही दिया गया था तो अच्छा होता कि कांग्रेस भाजपा सहित सभी दल मणिपुर हिंसा के मूल कारणों में जाकर मणिपुर समस्या के मूल निदान पर गंभीर चर्चा करते।
अविश्वास प्रस्ताव पर बोलते हुए गृहमंत्री अमित शाह ने बिना किसी राजनीतिक भावना के मणिपुर की घटना का विस्तृत वर्णन किया और विपक्ष से मणिपुर की समस्या पर सार्थक बहस करने की अपील की । अमित शाह का भाषण बहुत प्रभावशाली था । विपक्ष यदि संवेदनशील और समझदार होता तो मौके का फायदा उठाता और अमित शाह की अपील को स्वीकार कर अविश्वास प्रस्ताव पर चर्चा के दौरान ही सार्थक बहस करता । जिससे देशभर में विपक्षी दलों की कुछ समस्याओं के प्रति गंभीर रूख अपनाने का संदेश जाता और विपक्ष की छवि में कुछ सुधार होता । लेकिन कांग्रेस के रणनीतिकारों ने फिर उस मौके को छोड़ दिया । वे मात्र हंगामा करने को अपनी राजनीतिक सफलता मान रहे थे। विपक्ष का कोई भी वक्ता अपना प्रभाव नहीं छोड़ पाया। ऐसा लगा मानो सभी को किसी ने एक लिखा लिखाया भाषण पकड़ा दिया हो
अंत में प्रधानमंत्री को बोलना था । और सब जानते हैं कि प्रधानमंत्री किस तरह से अपने विरोधियों को चुन-चुन कर लपेटते हैं और उनके हर आरोप का जवाब देते हैं । यही कारण है कि संसद तो दूर देशभर को अविश्वास प्रस्ताव पर प्रधानमंत्री के जवाब की प्रतीक्षा थी । लोग प्रधानमंत्री को सुनने के लिए अपने-अपने टीवी से चिपक गए । उन्होंने लगभग 2 घंटे 14 मिनट के अपने भाषण में विपक्ष को धो कर रख दिया । अविश्वास प्रस्ताव पर बोलते समय टीएमसी की सांसद महुआ मोइत्रा ने यह आशंका व्यक्त की थी प्रधानमंत्री अंत में आएंगे और हम सब की धज्जियां उड़ा कर चले जाएंगे और वही हुआ । टीएमसी सांसद महुआ मोइत्रा की बात सच निकली ।
संख्या बल तो विपक्ष के पास था ही नहीं उसे मालूम था कि मतदान के समय उसका प्रस्ताव गिर जाएगा । उसके पास एक मौका था कि वह गंभीर मुद्दों पर गंभीरता के साथ अपने तर्कों से देश को प्रभावित कर सकता था । लेकिन सच यह है की पूरी चर्चा ने विपक्ष की छवि को और धूमिल कर दिया और इसीलिए मुझे तो यही लगता है कि कांग्रेस के रणनीतिकारों ने अविश्वास प्रस्ताव के माध्यम से एक बार फिर सैल्फ गोल कर लिया ।