शिक्षा का एक पहलू यह भी

एक दौर ऐसा भी था जब शिक्षण संस्थान बहुत-बहुत दूरियों पर होते थे ।  लोगों को शिक्षा प्राप्त करने के लिए कोसो चलना पड़ता था । नदिया पार करनी पड़ती थी । एक दौर आज का है जब हर गली मोहल्ले में शिक्षण संस्थान खुले हुए हैं ।

लेकिन दोनों परिस्थितियों में बहुत फर्क है । उस दौर में जो भी शिक्षण संस्थान  थे वहां हमें यह नहीं ढूंढना पड़ता था किस संस्थान में शिक्षा का माहौल है  और किस में नहीं है ।  लेकिन आज की स्थिति दूसरी है शिक्षण संस्थान तो बहुत है लेकिन यह देखना आसान नहीं है किस संस्थान में शिक्षा का माहौल  है और किस में नहीं है। 

उस दौर में जब शिक्षा संस्थान खोले जाते थे तो भवनों पर बहुत ध्यान नहीं दिया जाता था बल्कि उच्च गुणवत्ता पर ध्यान दिया जाता था । आज जो शिक्षण संस्थान खुलते हैं वहां भवन पर ध्यान दिया जाता है लेकिन शिक्षा की गुणवत्ता कमोबेश गायब है । आज जो संस्थान खुल रहे हैं वह बाहर से कोई आलीशान भवन  या यहां तक कि 5 और 7 सितारा होटलों जैसे लगते हैं लेकिन शिक्षा के नाम पर खोखले होते हैं । कमरे होते हैं , पंखे होते हैं , कहीं कहीं एसी भी होते हैं , जेनरेटर होते हैं , लेकिन शिक्षक नहीं होते । अधिकांश निजी शिक्षण संस्थानों में शिक्षकों की स्थिति लेबर क्लास जैसी है । ऐसा नहीं है कि समाज में गुणवत्ता बाले शिक्षक हैं नहीं , लेकिन उन्हें कोई रखना नहीं चाहता । निजी शिक्षण संस्थानों के मालिकों का उद्देश्य शिक्षा नहीं अपितु पूंजी पर लाभ कमाना होता है। उन्हें शिक्षा की गुणवत्ता से मतलब ही नहीं।

पहले समय में शिक्षण संस्थान सीमित थे लेकिन शिक्षा महंगी नहीं थी और गरीब का बच्चा भी शिक्षा हासिल कर सकता था । आज संस्थान बहुत है लेकिन शिक्षा इतनी महंगी हो गई है कि गरीब की तो बात ही छोड़िए मध्यमवर्ग को भी बच्चों की फीस के बारे में सोचना पड़ता है।

सरकार ने शिक्षा को निजी क्षेत्र में इजाजत देकर शिक्षण संस्थान तो खोल दिए लेकिन सच में अपवादों को छोड़कर  यह संस्थान शिक्षा की दुकानें ही हैं आज कम ही ऐसे  संस्थान हैं जिनका उद्देश्य पैसा कमाना कम शिक्षा देना ज्यादा होता है । यदि कटु शब्दों का इस्तेमाल किया जाए तो आज  डिग्रियां बिक रही हैं । यदि आपके पास पैसे हैं लेकिन योग्यता नहीं है तो भी आप अनेक डिग्रियां ले सकते हैं और यदि आपके पास योग्यता है लेकिन धन नहीं है तो 1 डिग्री लेना भी आसान नहीं है । यह स्थिति दुर्भाग्यपूर्ण है हम सबको मिलकर इन हालातों को बदलना पड़ेगा । सरकार को इस बात पर ध्यान देना चाहिए । निजी शिक्षण संस्थानों को खोलने के बजाय यदि सरकार पत्राचार शिक्षा  को प्राथमिकता देती तो शायद स्थितियां ज्यादा बेहतर होती , शिक्षा की गुणवत्ता भी सुधरती और शिक्षा इतनी महंगी भी नहीं होती।

आज तमाम तरह के कोर्सेज छोटे-छोटे शहरों में मौजूद हैं और आम विद्यार्थी इन्हें कर भी रहे हैं लेकिन विद्यार्थियों में गुणवत्ता नाम की चीज ही नहीं है । कंपनियों को स्किल्ड लेबर की आज भी कमी खलती है । अफसोस यह है इस शिक्षा के व्यवसायीकरण में सिर्फ औद्योगिक घराने ही शामिल नहीं है बल्कि बड़े पैमाने पर राजनेता भी शिक्षा उद्योग में शामिल हो गए हैं साथ ही बड़े-बड़े नौकरशाहों ने भी शिक्षा उद्योग में पैर जमा लिए हैं इसी का परिणाम है की शिक्षा में  सुधार के लिए कोई भी सजग नहीं है ।

आज शिक्षा व्यवसाय है और शिक्षण संस्थान शिक्षा की दुकानें हैं समाज को इस पहलू पर ध्यान देना चाहिए हालात बदले जाने चाहिए जिम्मेदार लोगों को आगे आना चाहिए जिससे शिक्षा की दुकानें बंद हो और वास्तविक शिक्षण संस्थान सामने आए ।

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